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________________ वृक्षा विधवा वेशे रे ॥ सुणो अजयजी अर्थ ए वयणनो, जिशो धास्यो गुरु नपदेशे रे ॥तु13 मे०॥ ॥अमे चेतना लक्षणथी सही, नए संसारी शुन्न प्राणो रे ॥ रहिये के एह सं. ४सारमां, योनी चोराशी लख खाणी रे ॥ तु॥ए॥ को निमित्त विशेष साधवा, शुन | फल लह्यो नर अवतारो रे ॥ तिहां साधन शिवपूर कारणे, पाव्यां जिनमार्गमें सारो रे॥ तु॥१०॥ सार्थप श्री वीरजिणंद मिख्या, निर्जय शिवपुर पहोचामे रे ॥ तिहां जावानो सही मन रहे, पिण तनु आलस देखामे रे ॥ तु.॥११॥ साधु मारग अति दोहिलो, स| देवा परिसहना कांटा रे ॥ पंच महाव्रत नार नपामवो, ते वदेतां रहे पग आंटा रे ॥ तु ॥१२॥ पार लग्थी बल करी चालवो, तेवीश विषय वश करवा रे ॥ पचवीशने पासे न राखवा, पांच वैरी विश्वास न धरवा रे॥ तु॥ १३ ॥ एक निल्लाधिप विचे उष्ट , तस सेवक दो माग रे ॥ तेदने पिण यतने वर्जवा, जेह उर्जय ने अति काग रे ॥ तु॥ १४ ॥श्म उद्यमश्री पंथे चालतां, चौदमे वासे पहोचे रे ॥ए मार्ग विषम सुसाश्रपे, देखा-१ 1 ड्यो मननी होंशे रे ॥ तु ॥१५॥ पिण ते पंथनो पूगे नवि पके, तव सार्थप वली म || नाखे रे ॥ एक वाट सुगम बीजी अजे, शिवपुर जावा जे मन राखे रे ॥ तु०॥ १६ ॥ अ-4 णुव्रतनो नार अलप ग्रही, दानादिक रक्षक संगे रे ॥ तप विनयादि अश्वे चढी, पहोचे शिल Jan Educatio IAlainelibrary.org n For Personal and Private Use Only ational
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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