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________________ धन्ना० ४७ रावे राय ॥ अजयकुमर प्राणे जिके, ते लहे लाख पसाय ॥ ५ ॥ परुह बन्यो गणिका तु रत, राय लह्यो आदेश | परिकर युत आावी प्रबल, मगधदेश सुविशेष ॥ ६ ॥ ॥ ढाल ११ मी. ॥ (वाद वाद बनायो वींऊलो. - ए देशी.) हवे ते गणिका कपटी मली, करे कपट श्राविका वेशो रे ॥ मुखवस्त्रादिक उपग रणने, मुखे राखी दिये उपदेशो रे ॥ तुमे देखो कपट गणिकातणां ॥ १ ॥ ए आंकली. ॥ एतो परिपाटी श्राविका तली, सवि शीखी सुपरे राखी रे । तेणे वेश धरया श्राविकात गा, वचनादिकथी मृडु जाषी रे || तु ॥ २ ॥ केइ धवयुत केइ विधवा थइ, वृ 用 | केइ बाला रे जीवाजीवादि पद जणे, करे त्रस यावर रखवाला रे ॥ तु० ॥ ३ ॥ इम वेश बनावी विगतशुं, राजगृही नगरी में आवे रे | उपवनमें मेरा थापीया, अति उन्नति अधि की फा रे ॥ तु ॥ ॥ प्रत्युषे पुष्पादिक ग्रदी, थई नेली नगरीमां जावे रे | फिरती फिरे ते देरासरे, सहु श्रावकने मन नावे रे ॥ तु० ॥ ५ ॥ एक दिन नृप चैत्यालये, श्रावे प्रति हर्ष घरती रे ॥ श्रजये दीली जिनमंदिरे, विधि सहित जिनार्चना करती रे ॥ तु ॥ ६ ॥ देखी कहे अजयकुमर शुं, तमे कोण हो किदां रहो बाई रे ॥ किस कारण श्रव्यां बोईहां, किहां जाशो कहो चिन लाई रे ॥ तु० ॥ ७ ॥ तव बोली विमासीने तिहां, एक Jain Educatioernational For Personal and Private Use Only २०१ w.jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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