SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धन्ना० ४१ नर सघलो गेटो ॥ २ ॥ तुमे पर उपगारी हो के, गुरामसिना दरिया || तुमे सहज सुरंगा हो के, संतोष जरिया । सुविवेक विचारी हो के, सारी तुम करली || जिनमत अनुसँग हो के, पुण्यातली जरणी ॥ ३ ॥ तुमे मुजने तारी हो के, वारी हुं रजानं तुमची ॥ सम कित सुरम शिशुं हो के, मति जागी श्रमची ॥ संसार जलधिमें हो के, पतीने राखी ॥ समजावी विगते हो के, मधुर वचन जाखी ॥ ४ ॥ उपकृति हवे तुमची हो के, करण किम याऊँ ॥ तुमे धर्मना धोरी हो के, नाम के जाऊं ॥ इम कहोंने कुमरने हो के, गंगा | देवी तिहां ॥ शुज रयण चिंतामणि हो के, आपे आणि तिहां ॥ ५ ॥ देश रत्न अमूलिक हो के, कुमर प्रते बोले | जिनधर्मने अगल हो के, एद बे कुण तोले ॥ करिने विधि वंदन हो के, देवी गम गई । धन्नकुमरना मननी हो के, चिंतित वात थई ॥ ६ ॥ लेइ रत्नने संगे दों के, रंगे प्रयास करे | अनुक्रमे नू क्रमतो हो के, मगधे पान घरे ॥ अति देश रंगोलो दो के, नीलो उपवनथी ॥ सवि देशमें महोदो हो के, ग्राम नगर पुरथी ॥ ७ ॥ लिए | देश दीपंती हो के, धनगरी मांदि वमी ॥ उपमाने एहने हो के, अवर न कोय जमी ॥ २ तुमारे वारणे जातं ३ तमे मने उपकार कर्यो, ते गुणनशीं १ जिनमत माथे प्रीति बे. गए केम थचं ? Jain Educationational ४ राजगृही नगरी. For Personal and Private Use Only उ०‍ ४१ inelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy