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________________ Jain Education ता करना; विपत्ति अजयने इरना; दुर्गति श्रने दुःखनो नाश करना; दुर्भाग्यादि कंदने दहन करना; प्रार्थना करेल चिंतामणिरत्न सरखं; वाघ, सर्प, जल ने अमिना नप | सर्गने शमन करनारुं; तेमज स्वर्ग अने मोक्ष प्रापनारुं बे ॥ २ ॥ शरीर अनित्य संस. रमें, | रोग शोग जंकार | मल मूत्रादिकथी जरी, अशुचि वहे नित द्वार || ३ || आयु वायु सम अधिर बे, जोग रोग सम जोय ॥ धन मद संध्या रंग सम, सयण सुपन सम होय ॥ ४ ॥ यतः । अनुष्टुवृत्तम् ॥ अनित्यानि शरीराणि, वैजवो नैव शाश्वतः ॥ नित्यं समीहतों मृ त्युः, कर्त्तव्यो धर्मसंग्रहः ॥ ३ ॥ जावार्थ:- शरीर अनित्य बे; वैजव अशाश्वता वे अने मृत्यु नित पासे श्रावतुं जाय बे; माटे धर्मनो संग्रह करवो. ॥ ३ ॥ तिसरा कारण माता तुमे, म हिमवंत महंत । पुत्र विनती सांजली, घरो धर्म गुणवंत ॥ ५ ॥ ( शिरोहीनो सालू हो के ऊपर योधपुरी. - ए देश . ) ॥ ढालमी. ॥ तव वचन सुणीने हो के, धन्नकुमार तणां ॥ शील रतन यतननां हो के, प्रतिहि सो | हामणां ॥ ते सांजली देवी हो के, गंगा मन हरखी ॥ निज मन नव्हासे दो के, कुमरनुं मुख निरखी ॥ १ ॥ करजोमी बोले हो के कुमर प्रते वाली ॥ तुम हृदयतली में हो के, वात सयल जाली ॥ तूं धर्म धुरंधर हो के, मनुष्यमांदे मोटो || वीजो तुज आागल हो के, ?? mational For Personal and Private Use Only jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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