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________________ बांहि ॥६॥ कृषि जाई निज नृप प्रते, सकल कह्यो अवदात ॥ दमापति पण प्रमुदित जणे, धनकुमर शुन्न जात ॥ ७ ॥ जो धन धन्ने तुम प्रते, दीधो ए असमान ॥ तो में पिण सबखो तने. नोगवोनोग प्रधान ॥॥ तव हालिक हर्षित थई, निधि प्रगट्यो जिण गमला ॥ वाशं तिण थानके नलं. धनपुर नामे गाम ||ए। नत्तम नर आव्या थकी. पामीशविले. विशाल ॥ दाली वे ततस अयो, ग्राम तणों नूपाल ॥ १०॥ यतः ॥ आर्यावृत्तम्. ॥ नत्त । म जण संसग्गी, सीलदरिईपि कुण सीलहूं ॥जह मेरुगिरिवि लग्गं, तिणमवि कणगत्त | णमुवेई ॥१॥नावार्थः-जेम मेरुगिरिने लागेलां तृणां पण सुवर्णपणाने पामे , तेम नत्तम जननो संसर्ग पण शील रहित पुरुषने शीलयुक्त करे . ॥१॥ ॥ ढाल ३ जी. ॥ (प्रवहण तिहाथो पूरीयां रे लाल.-ए देशी.) । हवे धनकुमर तिहां थकी रे लाल, पंथे चाल्यो जाय रे ॥ सुगुण नर ॥ जोवे देश | विदेशनां रे लाल, कौतुक अति सुखदाय रे ॥ सुगुण नर, पुण्ये मनवंबित मिले रे लाल ॥ 18 ॥ए आंकणी. ॥ पुण्ये सयल संयोग रे॥ सुणा पुण्ये सुर सानिध्य करे रे लाल, पुण्ये वरित लोग रे ॥सु॥पु०॥॥ तिहां कणे वन देखे जला रे लाल, वृक्षतणां तिहां लाख रे ट्र सु॥ आंबा जांबू करममा रे लाल, दामिम सूफने शख रे ।। सु०॥ पु० ॥ ३ ॥ ताल त है Jain Education L ational For Personal and Private Use Only Wanelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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