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________________ घना० दुःख एहने कोई आये, मुजयी अप्रीति जणाये रे ॥स०॥ईम चिंती यो सावधान, 'म३०ध्य सत्रे कीध प्रयाण रे ॥ स०॥१२॥ शुकन सबल तव श्रावे, मालव नणी सिदिसोहावे रे॥ स०॥ कौतुक कीमा बहू करतो, मनमाहे उमेद धरतो रे ॥स०॥ १३॥ मध्यान स-4 लमय जव थाये, तव पंथनो खेद जणाये रे ॥ स०॥ तिहां खेत्र खेतो हाली, एक दीगे नयम निहालो रे ॥ स०॥१४॥ तरु शीतल गया देखी, तिहां बेगे पंथ नवेखी रे॥ स०। ढाल बीजे नल्हासे ए बीजी, कही जिनविजये मन रीको रे ॥ स० ॥१५॥ 8 ॥दोहा. ॥ हालिक धन्नाने निरखि, विकसित वदन सुबोल ॥ नोजन आणे नक्ति थी, झाल दाल घृत गोल ॥१॥ धन्नो कहे नपक्रम विना, न करूं नोजन लिगार ॥ मृगप ति परे निज नपक्रमे, सवि राखं विवहार ॥शाते माटे तुम हलतणां, एक बे वालुं चास ॥ पनि तुम आग्रहश्री सही, करशुंनोजन खास ॥३॥ श्म कही हल खेड्यो तुरत, धन्न । कुमर ग्रही राश ॥ प्रगट्यो ततकण देखते, नूमियी निधि सुप्रकाश ॥४॥हाली कहे तुम नाग्यथी, प्रगट्यो एह निधान ॥ धनो कहे हालिक प्रते, ए तुम पुण्य प्रमाण ॥ ए॥ नप 5 कति करी नोजन कस्यां, श्रम टाली तिण गंहि ॥ कार्षिकशं मैत्री करी, गमन करे - १ हालीथी. ३३. Jain Educationalaelational For Personal and Private Use Only TA.jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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