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________________ प्रस्तावना. आ संसारमा परिमण करता प्राणीनने चुल्लकादि दश दृष्टांते उर्लन एवो मनुष्य 18 नो जन्म, आर्यकेत्र, उत्तमकुल अने निरोगीकाया; ए सर्वे पामवं उर्लन ने. कदापी को। * सुकृतना नदयथी ते पण पामी शकाय, परंतु श्री जिनधर्म पामवो, ते तो घणोज उर्खन्न । ! ते धर्म दान, शीयल, तप अने नाव; ए चार प्रकारे . तेमां दानना प्रनावथी धनसार्थवाहादिक अनेक जीवो सुख संपत्ति पामी सजतिना नाजन श्रया; शीयलना प्रन्नावहाथी सुदर्शनशेग्ने शली फीटीने सिंहासन थयु; तपना प्रत्नावथी दृढप्रहारी जेवा चार | जीवनी हत्या करनारे पण मुक्ति मेलवी अने नावना प्रन्नावथी नरतेश्वर महाराजने प्रारीसानुवनमां केवलज्ञान नत्पन्न थयु. आ प्रकारे दान, शीयल, तप अने नाव, फल है। सिशंतमा प्रसि. तथापि ओहि दानधर्मनु प्रधानपणुं होवाश्री किंचित् दानधर्मनुं म-2 दत्वपणुं देखामीए बीए. सर्व धर्ममा सार पदार्थ ते दानधर्मज बे. राज, शहि, स्मृति दिनोग, शब्द, रूप, रस, गंध अने स्पर्श तेमज पोताना तथा परना देशमां जंश, महिमा | है अने मनोवांबित अर्थनो देनार ते दानधर्मज . रुपनदेव प्रन्नुए प्रश्रम धनसार्थवाहना नवमां मुनिजनोने घृतनुं दान दीधुं, तो तीर्थ Jain Education ational For Personal and Private Use Only C anelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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