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________________ धन्ना० १८ रते थके, जगमें हांसो दोय ॥ ३ ॥ कागल वांची कपटथी, सार्थपने समजाय ॥ गजा वि ना गौरव धर्यो, कस्यो सकल व्यवसाय ॥ ४ ॥ दाम काम जव रूपन्यो, तव तिहां सत्यं कार ॥ देई करनी मुश्किा, जिम तिम राख्यो कार ॥ ५ ॥ एदवे वखते श्रावियो, न्य महेश्वरदत्त || लक्ष लान देई करी, ग्रह्मां क्रयाक ऊत्त ॥ ६ ॥ आज पढी हवे एहवो, नवि करवो व्यवसाय | तेद लान शा कामनो, जिसे करी ईजत जाय ॥ ७ ॥ ॥ ढाल १० मी. ॥ ( कपूर होय प्रति कजलो रे. - ए देशी . ) निसुली सुतनी वीनती रे, तव बोल्यो धनसार ।। ए शी वात कही तुमे रे, अजाइवार | पुत्र जी, समजो शीख सुजाण ॥ तुमे म करो तासा तारा ॥ पुत्र जी, तु मे लहेशो दुःखनी खाएा । पुत्र जी, समजो शीख सुजाण ॥ १ ॥ ए आंकणी ॥ दाम विनापि कीजीए रे, बुद्धि बले व्यवसाय ॥ घननो इहां कारण नहीं रे, सहुको कहीए न्या ॥ ० ॥ ० ॥ २ ॥ यतः ॥ बलथी बुद्धि आागली, जो उपजे ततकाल ॥ वानर वाघ वि गोइया, एकलमे शीयाल ॥ १ ॥ व्यापारे धन दारवे रे, बुद्धि विना धनवंत ॥ बुद्धे सुर नर वश दूवे रे, बुद्धे यश पसरंत ||०|| स०|| ३ || धन्नकुमरे निज बुद्धिश्री रे, लोधा लक्ष दीना र ॥ तुमने बुद्धि नहीं तीसी रे, जिसे करी होय जयकार | पु० ॥ स० ॥ ४॥ होंश होय जो Jain Educationtemnational For Personal and Private Use Only १० १ १८ jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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