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________________ धन्ना० १०० Jain Educationa तव ते वचन सुने हो धनदत्तादिक त्रिएये तिहां, आलोचे मनमांहि ॥ आपने वलं । जाग्ये हो धन अर्जन इहां भावो नथी, खोटी होंश शी त्यांहि ॥ तव ॥ १ ॥ ए कणी || एटला दिन प्रायासें हो सुप्रकासे धन श्रागम नही, न रह्यो मूलगो गेह ॥ बांध वथी पिस पाम्यो हो धन वाम्यो एद विलोकतां, पुण्य विना नर देह ॥ तव० ॥ २ ॥ इम चिंती मन खंते हो निःते पोटी वालीया, धनश्री जया हुता जेह ॥ धन्नाने सवि सोंपे हो नवि कोपे मन वच कायथी, वात कहे सवि तेह ॥ तव || ३ || एटला दिन हठ राख्यो हो नवि जांख्यो गुण कोइ ताइरो, ते अमचो अपराध | तूं श्रम सहुथी 'लहुको हो गुण दोढो दीठो हेजश्री, गुण निधि जलवी अगाध ॥ तव० ॥ ४ ॥ - श्रम कुल अंबर दीवो हो चिरंजीवो तेज प्रतापथी, अमे हुं खजूया सरूप ॥ तूं श्रम प्रीते पालक हो दुःखटालक सकल कुटुंबनो, श्रमे तो द्रुमक सरूप ॥ तव० ॥ ५ ॥ घणुं घं शुं कहिये हो निरवहिये अमने श्राजश्री, जाली बांधव प्रेम ॥ ए धन जे तुमे दीधो हो नवि लीधो जाए श्रम थ की, जिम कायरथी नेम ॥ तव ॥ ६ ॥ एहना जे अधिष्ठाता हो मद माता ते ताहरे वशे, अम वश कहो किम थाय ॥ जिम निज हाये परली हो वर तरुणी बांगी कंतने, अन्य १ नहानो. २ जीखारी. tional For Personal and Private Use Only नु०४ १०० v.jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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