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________________ RANASONS: हां पोग्यो खेडु, दाणे सवि काज निवेडं रे ॥ सु०॥ इह चोथे नव्हासे दाखी, ढाल पाच मी जिन श्म नाखी रे ।। सु०॥१॥ ॥दोहा. तव धन्नो कहे जातने, रहो ते माहरे पास ॥ खावो पीवो खांतिज्ञ, विल सो लील विलास ॥१॥ते कहे तुम हेठे अमे, रहेतां लहोये लाज ॥ सूर्य शुक्र गृहमांग है ये, नीच कहे कविराज ॥२॥ तव धन्ने बांधव प्रते, चौद चौद धन कोहि ॥ दीधी मन दो लत करी. का करे एहनी तोकि॥३॥देखोतसर्जनपणो, घनानोतिम नेह॥ अण" | तोख्यां आवी मिल्यां, सहज सुनावे एह ॥४॥ यतः॥ अनुष्टुब्वृत्तम्. ॥ सऊनाः सङना एव, उर्जना एव उऊंनाः ॥ नोभाः सुधांशुचिकिर्णा, न शीतास्तिग्मरोषि च ॥१॥ नावा र्थः-सऊन ते सऊनज रहे अने उऊन ते उर्जनज रहे. जेम चंमानां किरणो कदि पण गरम थतां नश्री, तेम सूर्यनां किरणो शीतल थतां नयी. ॥१॥ चाल्या कोशंबीनणी, धन लेने जाम || धनरक्षक तव देवता. मारे मुझर ताम॥५॥ बोले प्रगट थई मुखे, हा जीय न लागी लाज । जन्मथकी जोवो नही, करतां काज अकाज ॥६॥धन सवि धन्ना लाग्यथी, आवी मिल्यो ने अत्र ॥ तटन नीर सवे सदा, जलनिधिमें एकत्र ॥७॥ ॥ ढाल ६ ही.॥ (नटीयाणीना गीतनी देशी.) HARSH*ॐॐॐॐ Jain Educational lonal For Personal and Private Use Only 1- ainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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