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नय कहे नंमार ए वर बीजो श्रयो मा०, नदयन पिण प्रस्ताव लही स्त्री ले गयो मा०॥ 18|११॥ एडवे अवंतीमांही अनलन्नय कपन्यो मा०. प्रतिदिन बाले गेड ए अनरथ नीपन्यो ।
मा०॥ पूग्यो अन्नयकुमार नपाय कहे वही माण, अग्निनो औषध अग्नि कह्यो ते सही मा०॥१२॥ साहमी करवी अग्निये अग्नि हवे यदा मा०, अन्नयनो वचन प्रमाण करी कीधी तदा मा०॥ नलागी ते आग लागी नही तेहथी माण, बुहि वखाणी राय दियो व र नेहथी मा ॥१३॥ मूक्या विण ते जाणीनंमार ते तव धरयो माछ, त्रीजो वर तिणे गय अन्नयकुमरे वरयो मा०॥ देवप्रकोपे रोग अवंतीमें थयो मा०, पूब्यो अन्नयकुमार तिवारे नुत्तर लह्यो मा०॥१४॥ जे स्त्रीथी तुम नेत्र गले अवलोकतां माण, तेहने हाथे पिंक ॐ देवारो वलि उतां मा०॥राजाये स्त्री सातसे सवि नेली की मा०, मांझी जोवे दृष्टि सहु
थी फिरी फिरी मा ॥१५॥ अनमिष नयन विकार रह्यो नही केहनो मा०, चेमा पुत्री ताम शिवा नाम जेहनो मा०॥ सतीयोमें शिरदार वीरे जे मुखे कही मा०, अनमिष न8 यनथी तेह आगल कन्नी रही मा०॥१६॥ राजानी गली दृष्टि ते रामा आगले मा०, तव । कहे ए बलिपिम दियो जश नागले मा० ॥ दीधो बलि ततकाल नपश्च सवि गयो मा,
१ चकमकनी अग्नि करी ते शुद्ध तंत्रना योगी थएली अग्नि शांति पामी.
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