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________________ * CRE प्रेरितःस्त्रिया ॥ स्नेहलं दधि मनाति, पश्य मंधानको न किं ॥१॥नावार्थ:-जून के, सा 5/रा वांसमां रहेलो एवो जे मंथानक (रवैयो) ते पण स्त्रीनी पेरणाए करीने स्नेहवाला दधि ने शुं नथी वलोवी नांखतो? अपितु वलोवी नांखे डे! तेम सारा वंशमां नत्पन्न थएलो ए वो जे पुरुष, ते पण स्त्रीनी प्रेरणाथी शुं अकृत्यो न करे? अपितु करेज! ॥१॥ तेह नणी, एटलो नेद देखामियो, जे नणी न धरे मनमें मान ॥ अ०॥ लाखे वेचाणी तो पिण मो-R जमी, स्त्रीने ने तेह तणो नपमान ॥ अ॥ १५ ॥ यतः॥ माननितो मानज करे, जीत्यो । कंत सुहाय ॥ जश् साखीणी वाहिनी, तो पहिरीजे पाय ॥२॥ बंधव स्नेह तिहां लगें जा जीए, जिहां लगें कामिनी वात न कान ॥ १०॥ कोणिक राये हल्ल विहल्लशं, कीधो संग्राम ते स्त्री वच मान ॥१०॥१६ ॥ सुणी राजा धन्ना वयण सुहामणां, मनमांदी हरखे अतिही विशाल ॥ अ०॥त्रीजे नल्हासे प्रेम प्रकाशनी, नांखी जिनविजये पन्नरमी ढाल | ॥ ०॥१७॥ 1 ॥दोहा. ॥ नृप पहोत्यो निज मंदिरे, करि बहुलो सत्कार ॥ धन्नो (पण आव्यो घरे, परिवृत बहु परिवार ॥१॥ सहु को जन जयरव वदे, गम गम मिली थट्ट ॥ धन धन धनाशाहने, राख्यो वयण निपट्ट ॥२॥ मात तातने मोदी, सोपे सवि गृह सार ॥ कांता Jan Educational P ational For Personal and Private Use Only M w .jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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