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________________ धन्ना० ७३ कार ॥ बलकरी धनपतिये सवि, लोधो अम परिवार ॥ ७ ॥ एक वधूने कारणे, ये बेस हुने दुःख || देखो ए ग्रामे इहां, अन्यायेथी सुख ॥ ८ ॥ जइए धनपति मंदिरे, कहिये गोद aare || पति म पकड्या शा जणी, मूक तुं करि सुपसाय ॥ ए ॥ ॥ ढाल १२ मी. ॥ (वीण म वाइस रे, विल वारुं तुजने. - ए देशी. ) aft विचारने त्रिmये अबला, आवी धन श्रावासे ॥ द्वाररक्षके हांकी काढी, विलखी श्य विमासे || देखो देवे रे, ए दिन अमने दीधा ॥ १ ॥ ए ग्रांकली. ॥ सांज पीने पति पिस न मिल्या, न मिल्या सुसरो सासू । देशली पण दूरे नावी, फेरो पनी यो फांसू ॥ दे० ॥ २ ॥ हा! हा! धन्ने अधम ए कीधो, वसते गामे वलीके || व्हार न पहोचे कोइन । एहने, चंगुप्त जिम चणिके ॥ दे० ॥ ३ ॥ इम विलवंती ते निज स्थानक, रात्रि समय | तिदां प्रावे ॥ विरह विलूधी व्याकूल यावे, पाली अन्न न जावे ॥ दे० ॥ ४ ॥ सुसरा सासु कंत विना ते, सूनो स्थानक लागे || रात्रि गले तेम रोवे अबला, विरह विशेषे जागे ॥ दे० ॥ ५ ॥ शुं मे वनमां कृषि संताप्या, माया मृगने मरमी ॥ के मां पंखीनां फोड्यां, के इंकालने नरमी ॥ दे० ॥ ६ ॥ कंतने वश करवाने कारण, कामसमां में कीधां ॥ के शोक१. चाणाय के. Jain Education emnational For Personal and Private Use Only उ० ३ ७३ jainelibrary.org
SR No.600174
Book TitleDhanna Shalibhadrano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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