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मोदक लिया फिरी फिरी ॥ राय यशोधर मांस नख्यो नयनावली, डुमर नदरने काज'। अकाज करे वली ॥ १४ ॥ कर्मतले वश जात ए दुःख बहूलां सहे, लक्ष्मी गृह सुखवास तिहां ए दुःख लदे ॥ न लड़े विनय विवेक विचार आचार ए, मान मगन रहे मस्त न धर्म विचार ए ।। १५ ।। एहना संगथी मात अज्ञात घणी सहे, तिम वली तात विख्यात विटं बनता लदे || जोजाई पि चातृथी आपदमें पकी, मुज -रामा इस साथ लहे दुःख बापमी ॥ १६ ॥ यतः ॥ अनुष्टुवृत्तम्. ॥ कुसंगा संग दोवेरा, साधवो यांति विक्रियां ॥ एकरात्रि प्रसंगेन, काष्टघंटा विटंबना ॥ ३ ॥ नावार्थ:- खराब मालसनी सोबतथी सारा माणसो पण विक्रिया पामे बे; कारण के, हराइ गायनी साधे ( सारी गायने ) एक रात सोबत.. रहेवाथी बे पर बच्चे लाकरुं अने गलामां घंटमीनी विटंबना थर ॥ ३ ॥ हवे हुं मातने ता त प्रिया प्रतिपालशुं, ए बांधवने दूर करी रखवालशुं ॥ इम आलोची वात धन्ने धीरज धरी, त्रीजे नल्हासे ढाल बही जिन जयवरी ॥ १७ ॥
॥ दोहा ॥ तात प्रते पूछें तुरत, धनपतिशाह सुजाण ॥ कवल तुमे कोण ग्रामश्री, श्राव्या वो इल ठाय ॥ १ ॥ तव लकाश्री गोपवी, अवर कह्यो अधिकार ।। पिरा धन्ने निश्चय कियो, एद सही निरधार ॥ २ ॥ धन्नोशाह चित चिंतवे, धन विएा लाजे ए ॥ ति
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