________________
नवमेदि य मासेदिं सेसेहिं पावाए मज्जिमाए दविवालरस रमो रयसभाए एगे बीए बणं नत्तेणं पाणएणं साइणा नस्कत्तेणं जोगमुवागणं पच्चूसकालसमयं सि संपलिकनिसले पपन्नं अज्जयलाई कल्लाणफल विवागाईं, पण पन्नं अज्जयाई पावफल विवागाई, बत्तीसंच अपुवागरणाई वागरिता पदाणं नाम अज्कयणं विनावेमाणे | विनावेमाणे कालगए विश्यंते समुकाए विन्नजाइ - जरा - मरणबंधणे सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिधुड सबडुकप्पदी ॥ १४६ ॥ समणस्स जगवर्ज महावीरस्स जाव | सब कप्पदी एस्स नव वाससयाई विक्कताई, दसमस्स य वाससयस्स अयं प्रसी इमे संवचरे काले गच्छ, वायणंतरे पुण अयं तेणजए संवरे काले गइ इइ दीसइ | ॥ १४७ ॥ ( क० कि० क०सु० १४८ ) ॥ २४ ॥
१ रज्जुग.
*********
Jain Education International
For Private & Personal Use Only)
***
*******
www.jainelibrary.org