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________________ SANSKRISECRE उपरथी एटलं जाणी शकाशे के प्रस्तुत ग्रंथमा ओछामा ओछो केटला ग्रंथोनो प्रमाणतरीके उपयोग थयो छे. चोथा परिशिष्टमां आचार्योनां के ग्रंथकर्ताओनां नाम छे. आ नामो टीकामा अवतरण आपती वखते उपाध्यायजीए निर्देशेला छे. केटलांक अवतरणो। ग्रंथनां के तेना कर्त्ताओना नाम सिवायनां पण आवेलां छ जेनुं जुएं परिशिष्ट आपेल नथी. आ पुस्तकना आरंभमा एक स्थूल विषयानुक्रम आपेलो छे जे जोवामात्रथी ग्रंथना चर्चास्पद विषयोनु सामान्य ज्ञान तो वाचकने थइ ज जशे. खास सूचना-जो के संस्कृत प्राकृत आदि भाषाना प्रगट थता शास्त्रीय ग्रंथोनी प्रस्तावना संस्कृतमां लखवानो ज बहुधा प्रघात छे. तेम छतां तेने बदलवानां कारणो अनुभवमा आवतां जाय छे, जेनो अमे उल्लेख 'देवेन्द्रनरकेन्द्रप्रकरण'नी प्रस्तावनामा | कर्यो छे ते ज अहीं उतारी लइए छीए "१ विषयने जाणनार पण शास्त्रीयभाषा न जाणनार लोको ते ते भाषाना ग्रंथनी हकीकत प्रस्तावनाद्वारा पण मेळवी शकता नथी. २ बहुधा संस्कृत भाषामा लखाती प्रस्तावनाओ शब्दाडंबरवाळी होइ वस्तुज्ञानमा ओछी ज मदद करे छे. खास करी जैन समाजना साहित्यमा आ दोष जणाया सिवाय रहेतो नथी. ए वात सत्यप्रेमीने तो दीवा जेबी ज छे. ३ गमे तेवा महत्त्वपूर्ण विषयोना शास्त्रीय ग्रंथो तरफ लोकोने आकर्षित करवानुं साधन तेओ समक्ष मातृभाषामा ते ते ग्रंथोनी माहिती आपवी ते ज छे.. CARSA Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600159
Book TitleGurutattva Vinischaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1925
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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