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________________ पत्र. विषयानुक्रमणिका. गुरुतत्त्व- गाथा विषय पत्र. गाथा विषय विनिश्चयः३२-५४ जीतव्यवहार- स्वरूप. ६३-१ ६४-८५ लोकोत्तरभावव्यवहारिनो-सूत्रार्थज्ञातृत्वरूपजीतव्यवहारनी प्रवृत्तिमाटे नोदना-प्रतिनोदना. मुख्य गुण. ॥२३॥ जम्बूस्वामिसाथे ब्युच्छिन्न भावो. चतुर्दश पूर्वधरसाथे ६९ सूत्रार्थ नहि जाणनारने गच्छानुज्ञानो निषेध. व्युच्छिन्न भावो. कोण कया व्यवहारथी व्यवहार करे? टीकामां-तेवाने गच्छानुज्ञा करनारने तेमज तेवा जीतव्यवहारनी प्रवृत्ति क्यारे ? सावध अने असावद्य गच्छानुज्ञा धारनारने प्रायश्चित्त. ७०-७१ व्यवहारिनो एम जीतन्यवहारना बे प्रकार. द्रव्य-भावपरिवार. ७२-७५ केवळ निर्जराथै गण ५५-५६ पांच प्रकारना व्यवहार पैकी कयो सूत्रात्मक, धारणकरनारने पण लोकोए करेल पूजा-बहुमानादि कयो अर्थात्मक अने कयो उभयात्मक स्वीकारवानी अनुज्ञा. ७६-८५ निःशंकितपणे सूत्रार्थएनो विवेक. ज्ञातानुं ज भाव व्यवहारिपj ५७ व्यवहारप्ररूपणानो उपसंहार अने व्यवहारिना ८६-८८ सूत्रार्थज्ञाता पण मध्यस्थ होय तो ज भावव्यवर्णननो प्रारम्भ. वहारी नहि के मायामृषावादी. ७४-२ 1५८-१६४ व्यवहारिप्ररूपणा. ६८-८७ 1८९-९२ व्यवहारकर्ता सूत्रार्थज्ञ होवा छतां मायामृ५८-६० व्यवहारिपदना निक्षेपो. ६८-१ षावादी होय तो कार्याकार्यना व्यवहारने केवी६१-६३ लोकोत्तरभावव्यवहारीना गुणो. रीते बगाडे छे ते उपर कोई आचार्य- दृष्टान्त.७५-१ SCREGAOCALCULGADGURUCCC SSRAUSAHAAG ॥ २३ ॥ Jain IN For Private & Personal use only linelibrary.org
SR No.600159
Book TitleGurutattva Vinischaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1925
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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