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गुरुतत्त्व
गाथा
पत्र.
पत्र.
विषयानु
विनिश्चयः
क्रमणिका.
॥ २२॥
SACROSALURUSONG
विषय ८१-९२ मूलगुण अने उत्तरगुणमा प्रमादवश अतिचारो लागवा छतां भावविशुद्धिथी दोषाभाव मानेलो होइ नोदके प्रतिपादन करेल संयमना पालननी अशक्यतानो अने तेना अभावनो निषेध, तथा ते उपर व्यवहारभाष्यनी साक्षी. ९३ मशक गाडं मंडप-सर्षप आदिनां दृष्टान्तोद्वारा मूलगुण अने उत्तरगुणविषयक प्रतिसेवनाथी थता चारित्रना नाशना तारतम्यनुं प्रदर्शन. ९४ उत्तरगुणो. ९५-९९ असंयमस्थानो भने तेनी उत्पत्तिनां कारणो. १००-८ छेदप्रायश्चित्त पर्यंत चारित्रर्नु अखंडपणुं. तेमाटे आक्षेपपरिहार तथा शर्कराकूटर्नु दृष्टान्त. १०९-१२ मूलगुण तथा उत्तरगुणनी विराधनाद्वारा तत्काळ अने लांबे काळे थती चारित्रनी विराधनानु शर्करासर्षप-गाडं मंडप वस्त्रआदि दृष्टान्तोद्वारा प्रदर्शन. ११३-२७ अवन्दनीय पार्श्वस्थादिनां लक्षणो. तथा साम्प्रतकालीन साधुओमां वक्र अने जडपणुं होवा छतां पण गीतार्थगुरुनिश्चित होइ चारित्रना पालननी योग्यता अने ते कारणे चारित्रनो सद्भाव.
गाथा
विषय १२८-४५ ग. नोदके जे एम कपुछे के 'एक पण शीलांगनी विराधनाथी चारित्रनो सर्वथा नाश थतो होवाथी तेना पालननी अशक्यता छेतेनो परिहार. १३४-४५ संयमश्रेणिप्ररूपणा.
६४६-५१ घ. 'क्रम विना अर्थात् देशविरतिनी प्राप्ति, प्रतिमाओर्नु पालन आदि क्रम विना चारित्रनो स्वीकार कराय छे माटे चारित्रना पालननी अशक्यता
छे' एम कहेनार नोदकने प्रत्युत्तर. १५२-७९ ६लक्षणयुक्त व्यवहर्ता सद्गुरुना अभावद्वारा
बतावेल व्यवहारना अभावतुं व्यवहारभाष्योक्त दृष्टान्तो द्वारा प्रतिविधान.
४२-१ १८०-२०१ ७ नोदके निवेदन करेल सत्यव्यवहारविच्छेदनां कारणोनुं प्रतिविधान.
४८-१ १८.क.सांप्रतकालीन व्यवहारनी भनेक विध
ASSESSORIAS
॥२२॥
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