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________________ ग्रंथपरिचय ७ परिचय. CONNOCELECT HE थनां बे रूप होय छे. एक बाह्य अने बीजु आन्तर, बाह्यरूपमा भाषा, रचना, परिमाण, विभाग आदि वस्तुओनो समावेश थाय छे. आंतररूपमा विषय, तेनी संकलना, तेनुं प्रामाण्य अने तेनुं महत्त्व आदि बाबतोनो समावेश KC थाय छे. बाह्यरूप-प्रस्तुत ग्रंथ मूळ अने टीका एम उभयात्मक छे. मूळनी भाषा प्राकृत अने टीकानी भाषा संस्कृत छे. मूळनी रचना पद्यमय अने टीकानी रचना गद्यमय छे. मूळतरीके गणातां पद्योनुं (गाथाओर्नु) परिमाण ९०५ छे अने टीका ७००० श्लोकपरिमाण छे. बां मूळ पद्यो काइ उपाध्यायजीए रच्यां नथी. अनेक पद्यो तो जेमनां तेम तेओए व्यवहारभाष्यादि प्राचीनतम ग्रंथोमांथी लीधा छे. अने जे जे पद्यो जे जे ग्रंथमाथी मूळमां गोठवेल छे ते ते पद्योनी टीका करतां ते ते ग्रंथर्नु नाम तेओश्रीए स्पष्टपणे लगभग सर्वत्र आपी दीधेल छे. टीकामां पण तेओश्रीए अनेक ग्रंथोना गद्यमय अने पद्यमय उताराओ, बहुधा ते ते ग्रंथना अगर तेना प्रणेता आचार्यना नामनिर्देशपूर्वक, आपेला छे. आ बधुं अमे विगतवार परिशिष्टोमा आप्युं छे. (जुओ परिशिष्ट नं. ३-४.) मूळ अने|81॥६॥ Gटीका ए बन्ने चार विभागमां वहेंचाएल छे. दरेक विभागने ग्रंथकारे उल्लास एवं नाम आप्युं छे. आ उल्लासो ए ग्रंथनां महाप्रकरणोद SEARCH Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600159
Book TitleGurutattva Vinischaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1925
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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