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________________ Jain Education ational सत्थपरमत्थवित्थारवेहणो जरण समयकुसलस्स । विबुहस्स तिलोयणनामगस्स गिहमेस संपत्तो ॥ २८ ॥ पवितो य निरुद्धो, जा अणवसरुत्ति दारवालेणं । दंतवणकुसुमहत्थो, ता एगो किंकरो पत्तो ॥ २९ ॥ मग्गिज्जतो वि अदाउ दंतवणमाइ सो गओ मज्झे । निस्सरिय खणेण अमग्गिओ वि तं दाउमारद्धो ॥ ३० ॥ एस न दिंतो पुत्र, किमिन्हि देइ त्ति सोमवसुपुट्ठो । पभणह वित्ती पढमं, पहुणो दिन्ने हवइ भत्ती ।। ३१ ।। इहरावन्ना तस्स उ, उद्धरियं सेसयाण सेसे व । इत्तो य दोहि पुरिसेहि मग्गियं तत्थ आयमणं ॥ ३२ ॥ एगए तरुणी, दिनं तं वालुगाइ एगस्स । बीयस्स दीहदंडग उल्लंकेणं दिएण तओ ॥ ३३ ॥ पुट्ठो भइ दुवारी, भो भद्द! इमीड़ पढमओ भत्ता । बीओ उण परपुरिसो, ता एवं चैव उचियं ति ॥ ३४ ॥ इत्थं रम्मि बहुभट्टचपयडिज्जमानमइविहवा । वरसिवियं आरूढा, तत्थेगा आगया तरुणी ।। ३५ ।। का एसा किं एवं समेइइय पुच्छिए पुणो तेणं । दोवारिएण भणियं, पंडियध्या इमा भद्द ! ।। ३६ ।। रायउलम्मि समस्सापयपूरणपत्तगरूयसम्माणा । सगिहं समेइ एवं सरस्सई नाम विक्खाया ॥ ३७ ॥ कह पूरियं इमीए, पयं ति दियपुच्छिओ भणह वित्ती । अवलंबियं पयमिमं रण्णा इय पूरियमिमीए ॥ ३८ ॥ ' तेन शुद्धेन शुद्धयति ' तयथा यत्सर्वव्यापकं चित्तं मलिनं दोपरेणुभिः । सद्विवेकाम्बुसंपर्कात् तेन शुद्धेन शुद्धयति ॥ ३९ ॥ For Private & Personal Use Only २६ jainelibrary.org
SR No.600153
Book TitleDharmratna Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
Publication Year
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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