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________________ श्रीगतिमना रायपसेणइस सुचना सार विहार ॥१४६॥ शनने पामशे. ___हवे तो ते दृढप्रतिज्ञ अर्हन् जिन भगवान केवळी कहेवाशे अने जेमां देवो मनुष्यो तथा असुरो रहे छे पवा समस्त लोकना | पर्यायने जाणशे, अर्थात् ते, प्राणीमात्रनां आगति, गति, स्थिति, च्यवन, उपपात, तर्क, क्रिया, मनोभाव वगेरेने जाणशे, तेमर्नु प्रकट कर्म के गुप्त कर्म ए बधु कळी शकशे, तेमर्नु खाघेल पीधेल अने भोगवेलुं समजी शकशे. पवो ते दृढप्रतिश अर्हन् सर्व लोकना सर्व जीवोना सर्व भावोने जाणतो जोतो पृथ्वी तळ उपर विहरशे. ए प्रकारे बहु वर्षे विहरतो ते पोताना आयुष्यनो अन्त निकटवर्ती जाणी घणा दिवसोनुं अनशन लेशे अने जे साध्यनी सिद्धि माटे नग्नभाव, मुंडभाव, केशलोच, ब्रह्मचर्यधारण, अस्नान, अदन्तधावन, अणुवहाणग, भूमिशय्या, काष्टासननो आश्रय, भिक्षा माटे परगृहप्रवेश, मानापमानसहन, लोकनिन्दा वगेरे घणु आकरूं कष्ट सह पडे छे तथा न खमी शकाय तेवा जात जातना वावीश परीषहो खमया पडे छे, ते साध्यनी सिद्धि मेळवशे, अर्थात् ते सिद्ध थशे, बुद्ध थशे, मुक्त थशे अने सर्व दुःखोना अन्तने करशेपरिनिर्वाण पामशे. [२१६] हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, एम कही भगवान गौतम, श्रमण भगवान महावीरने वांदी, नमी, संयम, अने तपबड़े आत्माने वासित करता विहरे छे. [२१७] भयोने जितेला जिनोने नमस्कार. श्रुतदेवता भगवतीने नमस्कार. प्रशप्ति भगवतीने नमस्कार.अरिहंत भगवान पार्श्वनाथने नमस्कार. राजा पपसीना प्रश्नोने जणायनारा प्रस्तुत ग्रन्थने नमस्कार. मूळर्नु ग्रन्थमान-२१२० PuNCISCONOMIS रायपसेणइयनो सार समाप्त ॥ ISICISSUS Jain Education t o For Private & Personal Use Only rjainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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