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रायपसेणइय सुत्तनो सार
धर्मिष्ठ
॥१२०॥
आस्रव संवर वगेरे तत्त्वोनी जाणकार हती अने तप तथा संयमवडे पोताना आत्माने वासित करती बहु पुण्य उपार्जन करती हती. तमारा कहेवा प्रमाणे तो, काळ आवतां मरण पामी, ए कोई एक स्वर्गमा देव थपली होवी जोइप. हे भंते ! केम खरुंने ?
पएसी वळी, ए मारी दादीनो हुँ वहालो पौत्र छु. हवे ए मारी दादी, तमारा कहेवा प्रमाणे देव थई होय तो तेणीए अहीं मारी पासे आवीने एवं कहेवू जोइए के-९ तारी दादी हती अने धार्मिक होवाने लीधे बहु पुण्योपार्जन करी स्वर्गमां देव थई छु, माटे
होईने स्वर्ग हे पौत्र ! तुं पण धार्मिक थजे अने देशनो कारभार प्रामाणिकपणे करजे, दानादिक बडे पुण्य उपार्जन करीश तो मारी पेठे स्वर्गना
गएलीमारी सुखो अनुभवीश.
दादी मने हे भंते ! मारी दादी मारी पासे आवीने ए प्रमाणे कहे तो जीव अने शरीर जुदां जुदां छे पचो मारी खात्री थाय. पण मर्याने
स्वर्ग विशे लायो वखत थयो छतां अत्यारसुधीमा मारी दादीप अहीं मारी पासे आवीने एवं कशुं य सूचवेलुं नथी, तेथी जीव अने शरीर
समाचार ए बन्ने पक जछे पण जुदां जुदां नथी ए मारी खात्री पाकी थाय छे.
आपवा न [१७०] केशी कुमारश्रमण बोल्याः ।
आवी माटे हे पपसी ! तुं एम समज के,०८ देवमंदिरमा जवा माटे तु नाहेलो छे, भीनां कपडां पहेरेलां छे, तारा थमां कळश अने धूपनी
जीव अने
| शरीर अपायासिए पोताना धर्मपरायण मित्रोन उदाहरण आपीने सूचवेली छे. तेमां कयु छ के-"राजा पायासिए पोताना धार्मिक मित्रोने कयु के तमो।
| भिन्न छे. तमारी धर्मवृत्तिने लीधे स्वर्ग जवाना अने एम बने तो मने तमो ए समाचार आपवा जरूर आवजो" इत्यादि-जुओ दीघनिकाय पृ० ३२७.
१०८ दीघनिकायमां आने बदले कुमार काश्यपे कोजु उदाहरण आपेलुं छे अने ते आ छे. “जेम कोई मनुष्य गूथकूपमां-गंथाती गटरमां-पडेलो होय अने तेनु आखु शरीर मळथी खरडायेल होय ते माणसने त्यांथी बहार काढी नवराबी-धोबरावी-चोक्खो करी, सुगंधी तेलथी १५ तेना उपर विलेपन करी, माळा वगेरे पहरावी तेने सुशोभित करो पछी तेने पाछा फरीवार ए गन्धाती गटरमा जवान कहेवामां आवे तो जाय
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