SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 506
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रायपसेण इय सुत्तनो सार ॥११८॥ [१६८] केशी कुमारश्रमण वोल्याः श्रमणः हे पपसी ! तारे सूर्यकांता नामे राणी छे. हवे तुं पम समज के प रूडी रूपाळी तारी गणी कोई रूडा रूपाळा परपुरुष साथे जेलमा मानवीय कामसुखोने अनुभवती होय एम तुं जो, तो ए कामुक पुरुषनो तुं शु दंड करे? हे भंते ! हुं ए पुरुषनो हाथ कापी नाखु, पग छेदी नाखु, एने शूळीए चडावी द अथवा एक ज घाए तेनो प्राण लउं. पडेलो अपहे पएसी ! ते कामुक पुरुष कदाच तने एम कहे के-हे स्वामी! तमे एक घडीक थोभी जाओ, मारा मित्रो ज्ञातिजनो संबंधो. 14राधी, पोताजनो अने परिवारना लोकोने हुँ पम कही आयु के-हे देवानुप्रियो! कामवृत्तिने वश थई हु सूर्यकांताना संगमां पडयो तेथी मरणनी | नां सगांने आ सख्त सजा पाम्यो छु, माटे हे देवानुप्रियो ! तमे भूल्येचूक्ये पण पवा पापाचरणमां न पडशो, पडशो तो मारी पेठे फांसीनी | समजाववा सजा पामशो. आवी शक____ हे पएसी ! ५ पुरुषतुं काकलुदीथी भरेलुं आ गळगळ वचन सांभळीने तु ते कामुकने सजा करतां घडीक पण थोभी | तो नथी ते जईश खरो? १० न आवे माटे हे भंते ! पम तो न ज बने. प कामुक मारो अपराधी छे माटे लेश पण ढील कर्या विना हुं तेने पाधरोज फांसीए चडावी दंडं. जीव अने एज प्रमाणे, हे पपसी ! नरकमां पडेलो तारो दादो परतंत्रपणे जे दुःखो भोगवी रह्यो छे ते तने-वहाला पौत्रने कहेवा न शरीर आवी शके. अभिन्न छे १०६ केशी कुमार श्रमण राणीनु उदाहरण आपीने अहीं जे हकीकत जणावे छे तेज हकीकत चोरनुं उदाहरण आपीमे कुमार काश्यप दीघनिकायमा जणावे छे. तेओ कहे छे के-हे राजन्य ! कोई पकडायेलो चोर तने एम कहे के, 'हु मारा कुटुंबने कही आq के तमे चोरी |१५| बने ? न करशो अने करशो तो मारी जेम विपत्तिमां पडशो एवँ मने मारा कुटुंबमा जई कही आववानी रजा आपो, हुं पाछो आवतां सुधी तमो खमो अने त्यारबाद मने शिक्षा करजो, तो तुं चोरनी ए वात माने खरो ? राजा न पाडे छे इत्यादि. जुओ दीघनिकाय पृ० ३२१. | एम केम Jain Educatintestinal ना ॥ For Private Personal Use Only Jww.jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy