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रायपसेणइय सुत्तनो
सार
पएसीनी धर्म सांभलवानी अयोग्यता
॥११॥
| अने सर्व कोईने हेरान हेरान करे छे. माटे हे देवानुप्रिय ! तमे ए राजाने धर्मोपदेश आपो, तो तेनुं घणु भलु थाय, साथे श्रमण ब्राह्मण भिक्षुओ, मनुष्यो, पशुओ अने पक्षीओनुं पण घणु भलु थाय अने तेम थतां तेना आखाय देशनुं पण घणु सारं थाय.
चित्तसारथिनं आ कथन सांभळी केशी कुमारभ्रमण बोल्या के-हे चित्त! जे मनुष्यो आराम के उद्यानमा आवेला धमण ब्राह्मणनी सामे जता नथी, तेमने वांदता नमता के सत्कारता नथी, तेमज तेमनी पर्युपासना करता नथी अने तेमनी पासे जई पोताना प्रश्नोना खुलासा पूछता नथी, तेओ केवळीए कहेला धर्मने सांभळवानो लाभ मेळवी शकता नथी.
जे मनुष्यो उपाश्रयमां आवेला श्रमण ब्राह्मणनो आदर करता नथी, तेमनी पासे जई कशो खुलासो पूछता नथी, तेओ धर्म सांभळवानो ल्हायो लई शकता नथी.
जे मनुष्यो गोचरीए नीकळेला श्रमण ब्राह्मणनी भक्ति करता नथी, तेमज तेमने विपुल अशन पान खादिम अने स्वादिम वडे प्रतिलाभता नथी तथा तेमने कोई प्रकारनो खुलासो पूछता नथी, तेओ धर्मने सांभळवा समजवाना अधिकारी थई शकता नथी.
तेमज जे मनुष्यो श्रमण ब्राह्मणनी पासे जवा छतां पोतानी जातने हाथ कपड़े के छत्री वडे ढांकी राखे छे-छुपावी राखे छे अर्थात् एक खूणामां जई चुपचाप बेसी रहे छे पण कशो खुलासो पूछवा आगळ आवता नथी, तेओ य धर्मने सांभळवानो लाभ खोई बेसे छे.
पण हे चित्त ! जे मनुष्यो आराम उद्यान के उपाश्रयमा आवेला श्रमण ब्राह्मणनो आदर करे छे, गोचरीए आवेला तेमने विपुल दान आपे छे अने तेमनी पासे जतां पोतानी जातने न छुपावतां ज्या ज्या प्रसंग मळे त्या त्या सर्व खुलासा पूछी ले छे, तेओ ज धर्मने सांभळयानो समजवानो के मेळववानो लाभ मेळयो शके छे.
तो हे चित्त ! तारा राजा पपसीने अमे धर्म केवी रीते कही शकीप, केमके ते अमारी पासे आवतो नथी तेमज अमारी सामु | पण जोतो नथी.
Jan Educati
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