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रायसेनइय सुतनो सार
उत्तम प्रासादम सुशोभित सिंहासने बेठो. त्यां तेनी सामे मृदंगो वागवा लाग्या, वत्रीश प्रकारनां नाटको थवा लाग्यां अने उत्तम तरुणीओ नाचवा लागीः ए रीते ते, गानतानमां पोतानो समय वितावतो उत्तम सुखोने भोगवतो रहेवा लाग्यो.
[१५७] हवे अन्य कोई दिवसे केशी कुमारभ्रमणे मागी आणेलां पीठ पाटीयां शय्या अने संथारो .. पाछां आपी दीघां अने पोते पोताना पांच अनगारो साथे बहार विहार अर्थ नीकळी पडया.
साथी नगरीथी विहार करी फरतां फरतां तेओ केकयिअर्ध देशनी सेयविया नगरीना मियवण उद्यानमां आवी पहोंच्या अने ५. त्यां यथोचित अवग्रह स्वीकारी संयम अने तपथी आत्माने भावित करता रहेवा लाग्या.
॥१०९॥
केशी कुमारभ्रमण ते उद्यानमां आबी पहोंच्या त्यारे तेमनुं आगमन थयुं जाणी ते उद्यानपालको बहु खुश थया. तेमनी पासे आवीने तेओए केशी श्रमणने वांद्या, तेमने योग्य रहेवाना स्थळोमां रहेवानी अनुमति आपी, अने तेमने उपयोगमां लेवा माटे पीठ पाटीयां संथारो वगेरे लई जवाने निमंत्रण आयुं.
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ते रवाळ केशी कुमारश्रमणनां नाम अने गोत्र पूछीने याद पण करी लोधां पछी तेओ एकांतमां भेगा थई परस्पर बातचीत करवा लाग्या के, हे देवानुप्रियो ! आपणो चित्तसारथि जेमनी वाट जोतो रहे छे, जेमनुं दर्शन इच्छे छे अने जेमनां नाम गोत्र सांभळतां पण ए खूब प्रसन्न थाय छे, ते ज आ केशी कुमारभ्रमण गामेगाम फरतां फरतां अहीं सेयविया नगरीमां आवी चडया छे;
१०० आजकाल जेम उपाश्रयमां पीठ पाट पाटला वगेरे तैयार रहे छे अने साइओ संथाराने साथै ज फेरवे छे तेम पहेला न हतुं. पहेला तो चोमासुं करनारा श्रमणो पोते जाते पीठ वगेरे उपयुक्त पदार्थने गृहस्थने त्यांथी निर्दोष रीते मागी लावता अने संथारो पण सा न फेरवता. ज्यारे अने ज्यांसुधी जरूर पडे त्यां सुधीनी मुदत माटे संथारो पण गृहस्थने त्यांथी मागी लाववामां आवतो. संथारामां घास- १५ पराळ पाथरवामां आवतुं.
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केशिश्रमण
सेयविया
आव्या
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