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रायपसेणइय सुत्तनो
सार
॥८६॥
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वळी, फूल, माळा, गन्ध अने मोरपछ वगेरेनां तेटलां ज पटलको त्यां स्थापी राखेलां छे. ए उपरान्त एकसी आठ एकसो आठ सिंहासनो, छत्रो, चामरो, तेलना डबाओ, कुठना डबाओ, सुगन्धी पत्र, सुगन्धी चूवा, तगर, पलची, हरताळ, हिंगळोक, मणसिल अने आंजना डबाओ, प वधुं त्यां यथाक्रमे गोठवी राखेलुं छे. ए डबाओमां तेल वगेरे जे पदार्थों भरेला छे ते अत्यन्त निर्मळ सुगन्धी अने उत्तम जातना छे.
वळी, प सिद्धायतनमां सुगंधी धूपथी मघमघतां एकसो ने आठ धूपधाणां राखेलां छे अने प आयतनोनी उपर जडेला आठ आठ मंगळो धजाओ अने छत्र वगेरे पमनी शोभामां बधारो करी रह्यां छे.
[१३१] ते सिद्धायतनमी उत्तरपूर्वे पटले ईशान खूणामां सुधर्मासभा जेवी एक मोटी उपपातसभा आवेली छे. ए सभानी उत्तरपूर्वे सो योजन लांबो पचास योजन पहोलो अने दस योजन ऊंडो एवो एक मोटो स्वच्छ पाणीनो धरो भरेलो छे. ते धरानी उत्तरपूर्वे सूर्याभदेवनी एक मोटी अभिषेकसभा आवेली छे. ए सभामां अभिषेक करवानी बधी सामग्री भरेली छे. ते अभिषेकसभानी उत्तरपूर्वी सूर्याभवना अलंकारोथी भरेली एधी एक मोटी अलंकारसभा आवेली छे. प सभानी उत्तरपूर्वे एक मोटी व्यवसायसभानुं १० स्थान आवेलुं छे, तेमां सिंहासन वगेरे बधां उपकरणो व्यवस्थित रीते गोटवेलां छे.
व्यवसायसभामा सूर्याभदेवनुं एक मोटुं पुस्तकरत्न मूकेलुं छे. ते पुस्तकनां "पानां रत्ननां पानां उपर राखवानी कांबीओ रिष्ट८६ स्वर्गीय बधा पदार्थों रत्न अने मणि वगेरेना वर्णवेला छे तेम त्यांनुं पुस्तक पण रत्नमय छे एम मूळकार कहे छे. पुस्तकनी रत्नमयता पाषाण उपर लखवाना युगनी यादी आपे छे. लखवा माटे पांदडां के कागळो ज्यां सुधी नहि शोधायां हतां ते पहेलां पुस्तको पत्थर के माटीनी इंटो उपर लखातां ए हकीकत इतिहासप्रसिद्ध छे. आ स्वर्गीय पुस्तक पण पाषाणमय ( रत्नमय रत्न पण एक जातनो पाषाण छे) १५ होईने पत्थर उपर लखाएलुं होय ते स्वाभाविक छे. मूळकार, पुस्तक तेनी शाही लेखण खडियो अक्षरो अने खडियानां ढांकण सुद्धांनुं अद्भुत
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सूर्याभदेवना धर्म
पुस्तकनुं
वर्णन
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