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________________ रायपसेणइय सुतनो सार बांधेली छे. तेनी उपर साठ योजन ऊंचो योजन उंडो अने योजन पहोळो तथा अडताळीश खूणावाळो, अडताळीश धारवाळोranळी पासवाळो पवो महेन्द्रध्वजनी जेवो एक मोटो माणवक चैत्यस्तम्भ आवेलो छे. पनी उपर आठ आठ मंगळो धजाओ भने छत्रो घगेरे खोडी राखेलां छे. प चैत्यस्तम्भनी बच्चेना छत्रीश योजन" जेटला भागमां सोना रूपानां पाटियां जडेलां छे. ते पाटियां उपर बेसाडेला वज्रमय नागदन्तो मां रूपेरी शिकां टांगी राख्यां छे. ते शिकां उपर वज्रमय गोळ गोळ दावडीओ गोठवी राखेली है अने ते दाबडीओमां ५ जिनना सक्थिओ - साथळनां हाडकांओ मूकी राखेलां छे. सूर्याभदेवने अने बीजां पण अनेक देव देवीओने जिनना ते सक्थिओ अर्चनीय के वन्दनीय के अने पर्युपासनीय छे. [१२७] आठ मंगळ अने चामर वगेरेथी सुशोभित ते माणवक चैत्यस्तम्भनी पूर्वे आठ योजन लांबी पहोळी अने चार योजन जाडी व सर्वमणिमय एक मोटी मणिपीठिका आवेली छे अने तेना उपर एक मोटुं सिंहासन ढाळेलुं छे. ॥८३॥ बळी, ते चैत्यस्तम्भनी पश्चिमे, पूर्वे आवेली पत्री अने पवडी ज बीजी एक मणिपीठिका आवेली छे, तेना उपर एक मोटुं अतिशय १० रमणीय देवशयनीय गोठवेलुं छे. देवशयनीयमा पढवाया सोनाना, पाया मणिना अने पायाना कांगरां सोनानां छे. पनी इंसो अने उंपळां वज्रनां वाण विविधमणिमय, तळाई रूपेरो अने ओशोका सुवर्णमय छे. ते देवशयनीय बन्ने बाजुथी ऊंचुं अने बच्चेथी ढळतुं एवं गम्भीर छे, ए मेलुं न थाय पटला माटे पना उपर रातुं वस्त्र ढांकेलं ८४ अहीं आगमोदय समितिवाळी आवृत्तिमां मूळमां 'बत्तीसाए जोयणेसु' - छपाएलं छे पण ते पाठ, विवरण जोत खोटो जणाय छे. विव- १५ रणमां 'षत्रिशति योजनेषु' (पृ० ९२) पाठ छे माटे मूळमां 'छत्तीसार जोयणेसु' ज पाठ होवो उचित छे. Jain Education Intentional चैत्य स्तंभ नी वच्चेना शिकामां श्री जिनना साथळनां हाडकां For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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