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रायपसेग-1 इय सुत्तनो
सार
[७३] आठमा नाटकमां तेओप आवरणना-चंद्रना अने सूर्यना आवरणना देखावो करी देखाड्या अर्थात् ज्यारे चंद्रग्रहण अने सूर्यग्रहण थाय त्यारे जगतमां अने गगनमा जे जातनुं वातावरण प्रसरे छे ते ए नाटकमा प्रत्यक्ष करी बताववामां आव्यु.
८०लिपिना [७४] नवमा नाटकमां अस्तमनना देखावो आब्या पटले ज्यारे चंद्र अने सूर्य आथमी जाय छे त्यारे जगतमां अने आकाशमां जे आ
अभिनयो जे घटनाओ बने छे ते बधी नजरोनजर खडी करवामां आवी.
[७५] दसमुं नाटक चंद्रमंडल सूर्यमंडल नागमंडल यक्षमंडल भूतमंडल राक्षसमंडल अने गांधर्वमंडलना अभिनयोमा पूरं थयु ५ ॥६३॥ एमां चंद्र सूर्य नाग यक्ष भूत राक्षस अने गांधर्व संबंधी मंडलोना भावो भजवी बताव्या.
[७६] अग्यार, नाटक द्रुतविलंबित अभिनयने लगतुं हतुं, तेमां बृषभनी अने सिंहनी ललित गति, घोडानी अने गजनी विलंबित गति, मत्त घोडो अने मत्त हाथीनी विलसित गति करी बताववामां आवी.
[७७] बारमा नाटकमा सागर अने नागरना आकारोने अभिनयमा करी बताव्या. [७८] तेर, दिव्य नाटक नंदा अने चंपाना अभिनयने लगतुं हतुं. [७९] चौदमा नाटकमां मत्यांड मकरांड जार मारनी आकृतिओना अभिनयो हता. [८०] पन्नरमा नाटकमां क ख ग घ अने उना घाटना अभिनयो करी बताव्या.
७७ अहीं लिपिना अभिनयोना उल्लेखमां पांच वर्गना पच्चीश अक्षरोना ज अभिनयोनी नांध छे, तेमा स्वरना अने य र ल व श ष स ह ळ क्ष के ज्ञ ना अभिनयोनी उल्लेख नथी ए ध्यानमा राखवा जेवु छे. ब्राह्मी लिपिमा 'क' वगैरेनी जे मूळ आकृतिओ बतावी छे ते आकृतिना घाटना अभिनयो अहीं समजवा जोइए. अशोकना शिलालेखो ब्राझीलिपिमा लखाएला छे ए लिपिना अक्षरोनी आकृति माटे सुप्रसिद्ध १५ लिपिशास्त्री हीराचन्द गौरीशंकर ओझानी प्राचीन लिपिमाळा जोई जवी घटे,
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