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________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार मृदंग नंदीमृदंगोनो आलाप लेता, आलिंग कुस्तुंब गोमुखी मादळ उपर उत्ताडन करता, वीणा विपंची बल्लकीआने मूविता, सो तारनी मोटी वीणा काचबी वीणा चित्र वीणाने कूटता, बद्धीस सुघोषा नंदिघोषानुं सारण करता, भ्रामरी षड्भ्रामरी परिवादनीनुं स्फोटन करता, तूण तुंबवीणाने छबछवता, आमोद झांझ कुंभ नकुलोर्नु आमोटन करता-परस्पर अफळावता, मृदङ्ग हुडुक्की विचि नाटकना क्कीओने छेडता, करटी डिडिम किणित कडवांने बजावता, दर्दरक दर्दरिकाओ कुस्तुंबुरु कलशीओ मडुओ उपर अतिशय ताडन बत्रीश प्रकरता, तल ताल कांसाना तालो उपर थोडं थोडं ताडन करता-परस्पर घसता, रिंगिरिसिका लत्तिका मकरिका शिशुमारिकानुं घट्टन | कारनां जे करता अने बंसी वेणु बाली परिल्ली तथा बद्धकोने फूंकता हता. जे अभि[६५] ए रीते ए गीत नृत्य अने वाद्य दिव्य मनोश मनहर अने शृंगाररसथी तरबोळ बन्यां हतां, अद्भुत थयां हतां, बधानां नयो करी चित्तना आक्षेपक नीवडयां हतां. ए संगीतने सांभळनारा अने नृत्यने जोनाराना मुखमांथी उछळता वाहवाहना कोलाहलथी ए नाटक बताव्या शाळा गाजी रही हती. एम ए देवोनी दिव्य रमत प्रवृत्त थपली हती. तेमनां नाम [६६] प रमतमा मस्त बनेला ते देवकुमारो अने देवकुमारीओए श्रमण भगवान महावीरनी सामे स्वस्तिक श्रीक्स नंदावर्त १० वर्धमानक भद्रासन कलश मत्स्य अने दर्पणना दिव्य अभिनयो करी ए मंगळरूप प्रथम नाटक भजवी देखाडयुं हतुं. | ॥११॥ ७६ भरतर्नु नाट्यशास्त्र, नाट्य संगीत वगेरेने लगती अनेकविध माहितीओथी भर्यु पड्यु छे. अहीं नाटयना जे बस्रोश प्रकार करी देखाड्या छे तेमांना केटलाक तो ए नाट्यशास्त्रमा बतावेला छे. जेवा के-संकुचित. प्रसारित, दुत, विलम्बित, अंचित वगैरे. ५७मी कण्डिकाथी ८९मी कण्डिका सुधीमा संगीत अने वाद्योना वर्णन साथे ए बधा अभिनयोनो चितार आपेलो छे. घणाखरा अभिनयोनी भाव समजाय एवो छे. एमांना केटलांक पशुपक्षीने लगता, वनस्पतिने लगता, जगतना अन्य पदार्थोने लगता, प्राकृतिक प्रसंगोने लगता अने उत्पातोने लगता छे. वळी केटलाक लिपिने लगता छे-जे अभिनयो 'क' वगेरे अक्षरोनी आकृतिने लगता छे ते बधा लिपिसम्बन्धी अभिनयो छे. ब्राह्मी लिपिमा + आवी आकृति Jain Education al For Private & Personel Use Only मw.jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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