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________________ रायसेन इय सुतनो सार पोथी सुशोभित करेला हता, ज्यां त्यां लांबी लांबी सुगंधी माळाओ लटकावेली हती, पंचरंगी पुप्पोना तो ढगे ढग भरेला हता, अगर वगेरेना पूर्वोक्त सुगन्धी धूपोथी र मण्डप मघमधी रह्यो हतो. जाणे के सुगन्धनो कोइ खास ओरडो न होय ? मण्डपमां चारे तरफ वाजांओ वागी रह्यां हतां अने अप्सराओनां टोळे टोळां आमथी तेम फरतां जणातां हतां. ५ ए अभियोगिक देवोप ए प्रेक्षागृह मण्डपने हमणां कह्यो पवो सुन्दर, प्रसन्नतावर्धक, दर्शनीय- देखावडो अने अनुपम बनाव्यो हतो. ते मण्डपनी अन्दरनी भों यान- विमाननी भों जेवी तद्दन लीसी-सरखी बनावी हती अने तेमां सुगन्धी, सरस स्पर्शवाळा अने रंगबेरंगी मणिओ पण तेवा ज जडेला हता, जेमां पद्मलताओ भरेली के पवो एक मोटो सारामां सारो चन्दरवो ते मण्डपमां बांधेलो हतो. [४२] ते मण्डपना ए लीसा भूभागनी बच्चोवच्च ते देवोप एक मोटो वज्रमय अखाडो बनाव्यो प अखाडानी बच्चोवच्च, आठ योजन लांबी पहोळी अने चार योजन जाडी पक्षी एक मोटी स्वच्छ, सुंवाळी, मणिमय मणिपीठिका बनावी से मणिपीटिका उपर एक मोटुं सिंहासन स्थापन करें. सिंहासन उपरना चाकळा (?) सुवर्णमय तार झीक अने सताराथी झगझगता हताः सिंहो रत्नना, पाया सोनाना, पायाना कांगरा अनेक प्रकारना मणिओना, गात्रो जांबूनदनां, सांधाओ वज्रना अने सिंहासननुं वाण अनेक मणिओथी भरेलुं हतुं. बळी ते सिंहासनमां घोडो, हाथी, मगर वगेरे पूर्वोक्त अनेक चित्र कोरेलां हतां सिंहासन आगळनुं पादपीठ मणिमय अने रत्नमय हतुं, ते पादपीठ उपरनुं पग राखवानुं मसूरियुं सुंवाळा अस्तरथी ढांकेलं हतुं अने ते मसूरियानी लटकती झालर कोमळ केसरतंतु जेवी जणाती हती. सिंहासन उपर रज न पडे माटे तेने सारा शीवेला रजखाणथी ढांकेलं हतुं, चोक्खा कपासमांथी बनेलुं चोक्खुं सूतराउ कपडुं ते रजस्त्राण उपर गोठवेलुं हतुं अने ते आखा सिंहासन उपर एक रातुं वस्त्र ढांकेलं हतुं, ए रीते प सिंहासनने रम्य, वाळु अने सर्व प्रकारे प्रासादिक बनाववामां आवयं हतुं. [४३] प सुन्दर सिंहासनना उपरना भागमां शङ्ख, कुन्द, जलबिन्दु अने समुद्रना फोण जेवुं धोळु, तेमां भरेलां रत्नोथी झगमगतुं, झीं अने सुन्दर एक मोटुं विजयदृष्य बांधेलुं हतुं. ए विजयदृष्यनी बरोबर बच्चोवच्च एक मोटो वज्रमय अंकुश वांको सळीयो Jain Education emonal For Private & Personal Use Only १० १५ ४२ प्रेक्षागृ हमंडपम वेला अखाडानुं अने अखा डा उपर आवेलां म णिपीठिका तथा सिंहा सननुं वर्णन ॥५१॥ w.jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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