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________________ स. टी. सम्यक ॥२४॥ SCIENCREASECRECS अत्रार्थे पुष्पचूलोदाहरणं तथाहि अस्थि इह भरहवासे, बहुभद्दा पुप्फभद्दिया नयरी । जसु परिसरंमि तरुणिब्ब, वहइ सुपओहरा गङ्गा ॥ १ ॥ तत्थासि सकुलकेऊ, रिउकुलकेऊय पुप्फकेउनियो । जस्स करे इसी रेहइ, विजयसिरीवेणिदण्डव्य ॥२॥ सुद्धमई हंसगई, विणयवई नयवई सुसीलवई । देवगुरुविहियपणई, तस्स पिआ आसि पुप्फवई ॥३॥ विसयसुहमणुहवंताण, ताण मिहुणं मणोहरं जायं । तणओ य पुप्फचूलो, तणया पुण पुप्फचूला य ४॥४॥ समगं रममाणाणं, समरूवाणं पवड्डमाणाणं । निरुवमपिम्मपराणं, ताणं वच्चन्ति दियहाई॥ ५ ॥ कइयावि कामलीला-वर्णमि तारूण्णयंमि वट्टन्ता । ते नियवि नियो नियमाणसंमि इय चिन्तिउं लग्गो॥ ६॥ जइ एयाण परुप्परपिम्मपराणं समाणरूवाणं । कहविहु कीरइ विरहो, ता नृणममङ्गलं हुजा ॥ ७॥ तो एयाणं करगहमङ्गलकरणंमि निम्मिए सन्ते । विहिणो अउब्वविन्नाणपयडणं सहलयं होइ ॥८॥ अहमवि विरहं एयाणमक्खमो पिक्खिउं मणागपि । तणयतणयाण पाणि-ग्गहणमओ कारवेमि लहु ॥९॥ तो मन्तिपमुहनायरलोए सद्दावि & निवो भणइ । अन्तेउरंमि रयणं, उप्पजइ तस्स को सामी? ॥१०॥ ते विहु भणन्ति सामिय ! सयलम्मिवि मण्डलंमिजं रयणं । उपजइ तस्स पहू, निवो किमंतउरगयस्स? ॥११॥ नियदेसे जं रयणं, जायइ जणउब तं जहिच्छाए। विणिवेसन्तो सययं, वारिजइ केण धरणिधणो? ॥१२॥ इय तव्वयणछ(ब)लेणं, छलप्पहाणो नरेसरो हिट्ठो। लोय ॥२४॥ Jain Educat M i onal For Privale & Personal Use Only A jainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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