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________________ सम्य० स०टी० ॥२१९॥ रयणमयसालहंजियराइयथंभयसहस्ससंकिण्णं । रणिरमणिकिंकिणीगणउन्भडधयवडसमूहजुयं ॥ १३५ ॥ उल्लसिरपवरतोरणवजपहारइयरुइरसुरचावं। विप्फारियनयणजुओ स नियइ पायालवरभवणं ॥१३५ ॥ कुलयं । तम्मज्झे । समरूवा समनेवत्था समाणऽलंकरणा। दिद्या रण्णा कन्ना सुवण्णवण्णा सुरीउच्च ॥ १३७॥ तम्मज्झे अइउन्नयमणिमयसिंहासणंमि उवइडे सेविजंतिं कन्नाहिं ताहिं पिक्खेइ ससिलेहं ॥१३८॥ जय जय सामिणि! मयगलगामिणि सिरिनायलोयनाहस्स । पाणेसरि ! सुरसुंदरि ! सुंदरतररूवमयहरणि ॥ १३९ ॥ एवं वण्णिजंतिं तं राया नियवि विम्हियस्संतो। चिंतइ नूणं एसा लखिजइ कावि सुररमणी ॥ १४॥ जुयलं ॥ अज नयणूसवो मे संजाओ जीवियंपि सकयत्थं । जं एसा सुररमणी रइरमणीया मए दिट्ठा ॥ १४१॥ विम्हयउप्फुल्लियलोयणस्स निवइस्स पिच्छमाणस्स । पिच्छणयं पारद्धं तीए आएसओ ताहिं ॥ १४२ ॥ सा जोगिणीवि तीए पणयाए वियरिऊण आसीसं । परिचइय इव पुचिं मणिसिंहासणमलंकुवइ ॥१४३॥ कन्नाहिवि संगीयं तं रायं आगयं मुणेऊणं । तह विहियं अमियमयंपि मुच्छजणयं जहा जायं ॥ १४४ ॥ खीणाइ खणं व निसाइ दिवसपहरे गए तहा तत्तो। तीए आएसेणं विसजियं पिक्खणं ताहि ॥ १४५ ॥ तम्मि समयंमि सहसा अट्ठारसभुजपिञ्जरमणिजा। तीए संकेएणं अइसरसा रसवई पत्ता ॥ १४६ ॥ उप्पन्नसंसया इव सा तं जंपेइ जोइणी देवी । किं नागरायरजं चइऊणं इत्थ पत्तासि ? ॥ १४७ ॥ बाहजलाविलनयणा साविहु संभासए सदुक्खच । जोइणिसामिणि ! जाणसि मह चरियं ॥२१९॥ Hann Educatan intentional For Private &Personal use Only www.iainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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