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सम्य०
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॥ ८३ ॥ तो गहियबाहुणातं वलेण वुणणस्स वडखड्डाए । मेयजं सो खिवई नरए बहुपावकारिं व ॥ ८४ ॥ लज्जाइ दीणत्रयणं तं भासह सो धरितु दिवतणुं । अज्जवि नहु बुज्झिहिसी एवमवत्थं गओवि तुमं ॥ ८५ ॥ मेयज्जो तं भासइ पढमं मह हरसु जाइमालिन्नं । पच्छा तुम्हुवट्ठे धम्मे परमायरं काहं ॥ ८६ ॥ ता पडिभणेइ देवो अवणेमि कहं कलंकपंकं ते । साहइ सोऽविहु सेणियरण्णो कन्नं विवाहेउं ॥ ८७ ॥ तत्तो छागो एगो पुरीसमज्झम्मि रयणसंघायं । मुंचंतो पइदिवसं देवेण समप्पिओ तस्स ॥ ८८ ॥ अह तेण य मेएणं थाल भरिऊण पवररयणेहिं । सेणियपुरओ धरिडं पुत्तकए पत्थिया कन्ना ॥ ८९ ॥ रण्णा निमच्छिओऽविहु पइदिवस रयणढोयणं काउं । वारिजंतोऽवि जणेण मग्गए रायकन्नं सो ॥ ९० ॥ एयस्स कओ रयणाण आगमो दुज्जणस्स व गुणाणं । इय चिंतिय अभ एणं पुट्ठो सो एगया मेओ ॥ ९१ ॥ भो ! कारुअ तुज्झ कओ रयणाणं आगमो ? स तं भणइ । अम्ह छगलस्स एअं रयणाणि पुरीसयं देव ! ॥ ९२ ॥ अभएणावि स भणिओ- एयं छागं निवस्स अप्पेसु । जह सो पूरइ वंछं | तेणावि तहेव पडिवन्नं ॥ ९३ ॥ सो छगलो निवगेहे बद्धो मलमेव मुंचइ न अन्नं । पुनरवि तग्गिहमेओ रयणाणि तहेव मुंचेइ ॥ ९४ ॥ अभएण तओ नाओ नृणं देवस्स एस माहप्पो । नहु कोऽवि जए अत्थो अगोयरो बुद्धिमंताणं ॥ ९५ ॥ तं बाहरेइ अभओ, वैभारगिरिम्मि पवररहमग्गं । कुणसु सुहेणं जेणं गंतूण नमिज्जए वीरो ॥ ९६ ॥ तम्मि उ तहेव विहिए सुरेण पुणरवि पुरस्स बहिभाए । कारावइ सोवणं पायारं पवरकविसीसं ॥ ९७ ॥ पुणरवि
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स०टी०
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