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________________ सम्यक स० टी० ॥१७२॥ R-SCANNICISCCR-C काउंदिक्खिय अन्नत्थ मुणी स विहरेइ ॥ ५५ ॥ साहु अहं पुण पित्तिजएण भवसायराउ उद्धरिओ। मुणिचंदरायपुत्तो इय चिंतिय तवइ तिवतवं ॥५६॥ माहणतणओ दूमइ मणमि जं दिक्खिओ छलेणाहं । जिणधम्मम्मि दुगुंछ कुणमाणो तवइ उग्गतवं ॥ ५७॥ ते दोऽवि तवं चरिउं समाहिणा पाविऊण तह मरणं । अभुन्नं नेहपरा, सुभारलोए सुरवरा जाया ॥५८॥ तत्थ पइन्ना एसा परुप्परं तेहिं नेहओ विहिया। जो पढमं चवइ इओ बोहेयधो य सो तेणं ॥ ५९॥ अह भरहवासकमलातिलयं रायगिहनामयं नयरं । तं पालइ निवसेणीपणओ सिरिसेणिओ राया है॥६०॥ तत्थेव पुरोहियसुयजीवो चविऊण देवलोगाओ । उयरम्मि मेइणीए दुगुंछकम्माउ ओइन्नो ॥६१॥ तम्मि य पुरम्मि निंदू आसी धणसत्यवाहपाणपिया । मेयस्स भारियाए तीए जाया समं पीई ॥ ६२॥ सा निंदू पइदियहं परितप्पंती सुयाण दुक्खेणं । कइयावि मेइणीए समागयाए गिहं पुट्ठा ॥६३॥ सहि ! किं दूमियचित्ता मिलाणवयणा य दीससे निचं ? । साविहु भणेइ हंजे सुयाण भरणस्स दुक्खेणं ॥ ६४ ॥ तो मेइणीइ सुणिउं तत्व*यणं साहियं पुरो तीए । जइ मह होही पुत्तो ता तुझ समप्पइस्सामि ॥६५॥ विहिणो वसेण दुण्हवि गभो समकालमेव संजाओ। समयम्मि मेइणीए हुत्था बालो अवालगुणो ॥६६॥ निंदूवि जायमित्तं मयकन्नं मेइणीइ। दाऊणं । नियहियजणेण तीए आणावइ गोविऊण सुयं ॥ ६७॥ गेहम्मि आगयाए तं वालं पाडिऊण पयपुरओ। मेईए इन्भपिया सपिम्मगम्भं इमं मणइ ॥ ६८ ॥ तुह बहिणी एस पुत्तो नहु मह तणओ य एस जीवेउ । उल्लवइ ॥१७२॥ ONG-MIL Hamn Education For Private &Personal use Only ainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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