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________________ सम्य० ॥११७॥ तरुसेवा, क्यावि किं निष्फला होइ ? ॥ ८ ॥ तीए सुविचारत्तं सामत्थं सयलधम्मकम्मेसुं । नाउं संघो चिंत | एसुचिया कोसकज्जेसु ॥ ९ ॥ तो संघसम्मएणं, भंडाराईण सयलकज्जम्मि । सुरिहिं सा ठविया, गुणेहिं परमुन्नई (पत्ता ॥ १० ॥ तिन्निवि ते तीइ सुया मुणिणो सिद्धंतसारमयरंदं । भसलुव सया गुरुमुहकमलाउ पिबंति आकंठ ॥ ११ ॥ सिक्खविया बिजाओ, सघाओ ताण सूरिराएणं । पुबगयं नयचकं पमाणगंथं पमुत्तृणं ॥ १२ ॥ जं तं सूरिवरेहिं, सारुद्धारं करितु निम्मवियं । सत्थं नयचक्कक्खं, पुवस्स पमाणवायस्स ॥ १३ ॥ आईमज्झवसाणे, सपाडिहेरस्स तस्स पढणम्मि । गुरुचेइयसंघाणं, कीरइ पूया अइमहेणं ॥ १४ ॥ एयस्स सुरेहिं अहिट्ठियस्स पुछा - गया इमा नीइ । कायद्या सेयत्थं महाअणत्थो हवाइ इहरा ॥ १५ ॥ सूरी अच्भुयपन्नाकलियं मल्लं पलोइउं चिलं । नूणं सयमेवेसो, वाइस्सइ पुत्थयं एयं ॥ १६ ॥ तो भणइ गुरू तं पइ सक्खं काऊण अजियं जणणिं । नयचक्कगंथपुत्थयमेयं तं मा पढिज्जासु ॥ १७ ॥ इय सिक्खं दाऊणं, मुत्तुं तं अजियासगासम्मि । जणपडिवोहनिमित्तं, सूरी विहरे अन्नत्थ ॥ १८ ॥ तो मलमुणी चिन्तइ किमहं सुयसायरेहिं सूरीहिं । नयचक्कतक्कगन्थप्पवायणेवि हु पडिनिसिद्धो ॥ १९ ॥ अभिलप्पाण सुयाणं, वण्णा सवत्थ हुन्ति सारिच्छा । वालुव रक्खसाओ, ता किं एयाउ बीहविओ ? ॥ २० ॥ ता इत्थ अस्थि अत्थो कोऽवि अउचो तओ निसिद्धोऽहं । तम्हा एवं वाइय कया भवि - सामि सुकयत्थो ? ॥ २१ ॥ जओ- चारियवामा वामा बाला वाला य हुंति णियमेणं । जुत्ताजुत्तवियारं कुग्गह Jain Education International For Private & Personal Use Only स० [टी ॥११७॥ www.jainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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