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________________ Jain Educatio | रंजियहियओ सगिहं, गंतूण भणेइ नियमजं ॥ १२७ ॥ तुम्हेहिं परिसुद्धो, आहारो सोहणस्स मुणिवइणो । भत्तिम्भरनिब्भराहिं, दायचो पणयनिरयाहिं ॥ १२८ ॥ अह भिक्खाए पत्तो, नमसिओ सोहणो मुणी ताहिं । पडिलाभिऊण भणिओ, भिक्खट्ठा इज्ज निचंपि ॥ १२९ ॥ तेसिं बोहनिमित्तं स महप्पा सुद्धमेव आहारं । लिंतो तिदिवसदहियं, न य गिण्हs विजमाणंपि ॥ १३० ॥ धणपालेणं हसिओ, तुम्ह गुरूणं न रुचए अम्बं । तिदिवसदहियं तेणं, नो गिण्हह महुररसिया जं ॥ १३१ ॥ तं पइ जंपर सोऽविहु, साहू अम्हाण विबुह ! सिद्धते । भणियं तिदिवसदहियं, जियसंसत्तं तओ चइमो ॥ १३२ ॥ तो धणपालो जंप, अहो अहो दंभविलसियमिमेसिं । जं दहियंपि पूयरयसंकुलं वज्जरंति हहा ॥ १३३ ॥ साहिखेवं पुणरवि, भणेइ सो नियगुरूण साहेसु । चिंतिजसु इत्थत्थे, उत्तरमेहामि मज्झण्हे ॥ १३४ ॥ तेण दहिभायणं तं तहेव संठावियं तओ स मुणी । गंतूणं गुरुपुरओ, भणेइ तवइयरं सवं ॥ १३५ ॥ अह विहियभोयणो सो, धणवालो बहुजणेण संजुत्तो । पत्तो सूरिसगासं, बुद्धिवलेणं जिणिउकामो ॥ १३६ ॥ पुच्छेइ दहिसरूवं, अतुच्छमिच्छत्तमुच्छिओ एस । सूरिं सोऽवि पपई, हुति हु संमुच्छिमा जीवा ॥ १३७ ॥ जओ भणियमागमे - मुग्गमासाइपभिई, विदलं कच्चमि गोरसे पडइ । ता तसजीवुप्पत्ती, भांति दहिएवि तिदिणुवरिं ॥ १३८ ॥ तं सुणिय भणइ विप्पो, विलग्गपेउच धूणिऊण सिरं । अहह असंबद्धपलाविराण किं भन्नए एसिं ? ॥ १३९ ॥ तप्पचयत्थमाणाविऊण तं दहियभायणं For Private & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.600143
Book TitleSamykatva Saptati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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