SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना श्रीस्थानाङ्ग सूत्रदीपिका वृत्तिः । ॥४॥ तरफथी प्रकाशित थयेली स्थानांग बृहबृत्तिनी प्रत करतां केटलाक स्थळोमा जेम शुद्ध पाठो मल्या छे तेम केटलाक स्थळोमां लेखनदोषथी अशुद्धिओ पण छे. ए अशुद्धिओनु संमार्जन आगमोदय समितिनी प्रतना आधारे तेमज अनेक विद्वानोने पूछीने करवामां आव्यु छे दीपिकानी प्रेसकोपी : श्री देवच द लालभाई जैन पुस्तके द्धार फंड-सस्थाए करावेली प्रेसकोपी घणी अशुद्ध, अपूर्ण अने अस्तव्यस्त हती में ग्रंथन संशोधन कर्या बाद प. बाबुलाल सवचंदभाईए फरीथी सुंदर अक्षरोथी व्यवस्थित प्रेसकोपी करी हती आ प्रथना संपादनमा तेओनो सारो सहयोग मल्यो छे. आ संस्करणमा परिशिष्ट रूपे भगवान अभयदेवसूरीश्वरजी म. विरचित वृहबृत्ति अने दीपिका टीकाना पाठभेदो सामसामा आपवामां आव्या छे ते उपरथो पाठोनी शुद्धि-अशुद्धिनो विचार करी शकाशे दीपिका टीकामां केटलेक ठेकाणे नवा मळेला पाठो संशोधन संपादन वखते विहार दरम्यान प्रूफ तपासता मूळ प्रेसकोपी, हस्तलिखित प्रत तथा ठाणांग वृहत्टीकानी मारी सुधारेली प्रत साथे न होवाथी वृहद्वृत्ति प्रमाणे पाटो भूक्या छे ते शुद्धिपत्रकमां सुधारी लेवामा आव्या छे. .0000000000000000000000000000000000000000000000०००००००. Jain Education in For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600142
Book TitleSthanang Sutra Dipika Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalharsh Gani, Mitranandvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1974
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy