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________________ श्रीचन्द्रीया सामाचारी ॥ ६ ॥ | कहवि होज्ज मरणं नवकारविवज्जियस्सावि ॥ १२ ॥ नवकारवज्जिओ सो निव्वाणमणुत्तरं कह लभेज्जा ? | तो पढमं चिय गेण्हउ उवहाणं होउ वा मा वा ॥ १३ ॥ गोयम ! जं समयं चिय सुओवयारं करेज्ज जो पाणी । तं समयं चिय जाणसु गहियतयङ्कं जिणाणा ॥ १४ ॥ एवं कय उवहाणो भवंतरे सुलहबोहिओ होज्जा । एयज्झव | साणोऽवि हु गोयम ! आराहओ भणिओ ॥ १५ ॥ जो उ अकाऊणमिमं गोयम ! गिण्हिज्ज भत्तिमंतोऽवि । सो मणुओ दट्टव्वो अगिण्हमाणेण सारिच्छो ॥ १६ ॥ पढमं चिय कन्नाहेडडएण जं पंचमंगलमहीयं । तस्तवि उवहाणपरस्स सुलहिया बोहि निहिट्टा ॥ १७ ॥ इय उवहाणपहाणं निउणं सव्वंपि वदणविहाणं । जिणपूयापुव्वं चिय पढेज्ज सुयभणियनीईए ||१८|| तं सरवंजणमत्ताबिंदुपयच्छेयठाणपरिसुद्धं । पढिऊणं चिइवंदणसुत्तं अत्थं विया - ||ज्जा ॥ १९ ॥ तत्थ य जत्थेव सिया संदेहो सुत्तअत्थविसयंमि । तं बहुसोऽवि विमंसिय सयलं निस्संकियं कुज्जा ॥ २० ॥ अह सोहणतिहिकरणे मुहुत्तनक्खत्तजोगलग्गंमि । अणुकूलंमि ससिबले सरसे सस्से य समयमि ॥ २१ ॥ निययविहवाणुरूवं संपाडिय भुवणनाहपूयेण । परमभन्त्तीऍ विहिणा पाडलाहियसाहुवग्गेण ॥ २२ ॥ भत्तिभर निब्भरेणं हरिसवसुल्लुसियबहलपुलएणं । सद्धासंवेगविवेग परमभावेण जुत्तेणं ॥ २३ ॥ विणिहयघणरागद्दोस I Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only उपधानविधि २ ॥६॥ www.jainelibrary.org
SR No.600138
Book TitleSubodh Samachari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMacchindracharya
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1980
Total Pages104
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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