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________________ श्रीचन्द्रीया आच्छामि दुक्कडं ७ तस्सुत्तरीकरणेणं जाव ठामि काउस्सग्मं ८ बीया वायणा | भावारिहंतसक्कथए पूर्वसमये पढमा सामाचारी अट्टम उप३. तओ तिण्हं संपयाणं दुगतिगचउक्कपयपमाणाणं पढमा वायणा दिज्जइ, तओ बत्तीसं आयंबिलाणि- विधिः ३ सोलसहिं गएहिं पंच २ पयपमाणाणं तिण्हं संपयाणं बीया वायणा दिज्जइ, अन्नेहिवि सोलसहिं गएहिं दुगचउक्क, तिगपयपमाणाणं तिण्हं संपयाणं तइया वायणा दिज्जइ चरिमगाहाएऽविय, तृतीयस्थ विधिः। स्थापनारिहंतथए आईए चउत्थं, तओ अंबिलतिगपज्जंते अज्झयणतिगरस एगा वायणा दिज्जइ अरिहंतचेइयाणं जावनिरुवसग्गवत्तिoयाए १ सद्धाए जावठामि काउस्सग्गं २ अन्नत्थूससिएणं जाव वोसिरामि ३ एगा वायणा चउत्थं । नामारिहंतत्थए आईए अट्टमं तओ पढमसिलोगस्स पढमा वायणा दिज्जइ, तओ पंचवीस आयंबिलाणि, बारसहिं गएहिं गाहातिगस्स बीया वायणा दिज्जइ, पुणोऽवि तेरसहिं गएहिं पणिहाणगाहातिगस्स तइया दिज्जइ वायणा ५ पंचमस्स विही। छटे सुयत्थए पढमं चउत्थं तओ पंच आयोबलाणि छट्टे गए गाहादुगस्स दोण्ह वित्ताणं एगा वायणा दिज्जइ. नवरं अज्झयणा तिहिं रूवगेहिं तिन्नि चउत्थरूवगे दोहिं पएहिं चउत्थमझयणं, अन्नहिं दोहिं पंचमं । सिद्धथुईए उवहाणं विणावि तिण्हं गाहाणं वायणा दिज्जइ, न पुण चरमगाहाजुयलस्स, जेण पच्छा कयंति, सम्वत्थ जत्थ जत्तियाणि आयंबिलाणि तत्थ तत्तियाणि अज्झयणाणि ॥ ॥ ५ ॥ SEC Jain Education Interational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600138
Book TitleSubodh Samachari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMacchindracharya
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1980
Total Pages104
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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