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________________ सूतमुक्तावल्यां ॥ ९१ ॥ | | रक्तानां च जने रतिः । अनवस्थितचित्तानां, न वने न जने रतिः ॥ ३४ ॥ प्रातः पूष्णो भवति महिमा नोपतापाय | यस्मात्कालेनास्तं क इह न गताः ? के न यास्यन्ति चान्ये १ । एतावत्तु व्यथयति यदा लोकबायैस्तमोभिस्तस्मिन्नेव प्रकृतिमलिनैर्व्यानि लब्धोऽवकाशः ॥ ३५ ॥ तां चंदा तां चांदणी, जां नवि ऊगे सूर । तां डक्कां तां डक्कुली, जाम न वज्जइ तूर ॥ ३६ ॥ असारस्य पदार्थस्य, प्रायेणाडम्बरो महान् । न हि स्वर्णे ध्वनिस्तादृगू, यादृक् कांस्येऽभिवीक्ष्यते ॥३७॥ न नव्यं पुस्तकं श्रेष्ठं, न चैतलोकरञ्जकम् । न तस्य जल्पतो लोकैः, प्रमाणीक्रियते वचः ॥ ३८ ॥ नादरं कुरुते कोऽपि, | निर्वेषस्य जगत्रये । आडम्बरेण पूज्यन्ते, सर्वत्र न गुणा जनैः ॥ ३९ ॥ दुद्दर रडिअं महिसीण कडक्खयं सेवडाण मंतणयं । खमणाण य वक्खाणं सडंबरो निष्फलो चेव ॥ ४० ॥ रासह रडिअं कुनरिंद जंपिअं इअरलोअपडिवन्नं । पढमं | चिअ गुरुआई । पच्छा लहुआई लहुआई ॥ ४१ ॥ काचा चिणा न चाविआ नयरि न दीधी अग्गि । बंभ पंचन न मारिआ किमु जाएवउ सग्गि ? ॥ ४२ ॥ वंभण धोइ म घोनिआ पत्थरि चीरु म फाडी । धोए पंचइ इंदिआ, जहिं | जूजुई मुहाडि ॥ ४३ ॥ काचा घटरे साचा जाणि लालता जड घाठा । ते नर दिन दिन दिठा देखत पेखत नाठा | ॥ ४४ ॥ काचा घटरे काचा जाणि साचइ संजमि पइठा । साचइ साचउं मानिउं तेहिं जाई सीवपुरी बइठा ॥ ४५ ॥ | मंत्र न मूझी जडी न औषध जाप न जोग जनोइ । प्राणिडा रहे दुखभर जाता राखणहार न कोइ ॥ ४६ ॥ संसारि फीरतइ जीवई लाधा माणुसना भवसारा । प्रमाद मुकी पुण्य करो रे जिम पामो भवपारा ॥ ४७ ॥ लोचन जाणे जगि | जोउंरे जोगी जोइ आपा । आप जोयंता जगि जाणुरे लोचन हुआ निकलापा ॥ ४८ ॥ जागि न जोगी ए नर सुता ते Jain Education International For Private & Personal Use Only १२६ प्रकीडन्योक्तौ च श्लो. ६८ ॥ ९१ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600137
Book TitleSukta Muktavali
Original Sutra AuthorPurvacharya
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1922
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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