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________________ Jain Education in एगिंदि पंच बार सत्त तिअ सत्त अट्टवीसा य। विअलेसु सत्त अड नव, जलखहचउपयउरगभुअगे ॥ २५१ ॥ अद्धत्तेरस वारस, दस दस नवगं नरामरे नूरए । वारसछवीस पणवीस, हुंति कुलकोडिलक्खाई ॥ २५२ ॥ इगको डिसत्तनवई, लक्खा सहा कुलाण कोडीणं । संबुडजोणि सुरेगिंदिनरया विअड विगल गम्भया ॥ २५३ ॥ अचित्तजोणि सुरनिरय, मीस गन्भे तिभेअ सेसाणं । सी उसिण णिरय सुरगन्भ, मीस तेउसिण सेस तिहा ॥ २५४ ॥ हयगभ संखवत्ता, जोणी कुम्मुन्नयाइ जायंति । अरिहहरिचक्किरामा, सीपत्ताइ सेसनरा ॥ २५५ ॥ आउस्स बंधकालो, अवाहकालो अ अंतसमओ अ । अपवत्तणपणवत्तण, उवकमणुवक्कमा भणिआ ॥ २५६ ॥ ति देवनारय, असंखतिरिनर छमाससेसाऊ । परभविआउं सेसा, निरुवक्कम तिभागसेसाऊ ॥ २५७ ॥ सोकमा पुण, सेसतिभागे अहव नवभागे । सत्तावीसइमे वा, अंतमुहुत्तंतिमे वावि ॥ २५८ ॥ इमे भागे बंधो, आउस भवे अवाहकालो सो । अंते उजुगइ इगसमय, वक्क चउपंचसमयंता ॥ २५९ ॥ उज्जुगइ पढमसमए, परभविअं आउअं तहाऽऽहारो । वक्काऍ वीअसमए, परभविआउं उदयमेइ ॥ २६० ॥ इगदुति वकासुं, दुगाइसम्एस परभवाहारो । दुगवक्काइस समया, इग दो तिन्नि अ अणाहारा ॥ २६१ ॥ बहुकालवेअणिजं, कम्मं अप्पेण जमिह कालेण । वेइज्जइ जुगवं चिअ, उइन्नसवप्पएसग्गं ॥ २६२ ॥ अपवत्तणिज्जमेअं, आउं अहवा असेसकम्मंपि । बंधसमएवि बद्धं, सिढिलं चिअ तं जहाजोग्गं ॥ २६३ ॥ पुण गाढनिकायणबंधेणं पुत्रमेव किल बद्धं । तं होइ अणपवत्तणजोग्गं कमवेअणिजफलं ॥ २६४ ॥ 1 For Private & Personal Use Only % % *%* www.jainelibrary.org
SR No.600134
Book TitleSangrahani Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1915
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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