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________________ तेहिंतो दिसिविदिसिं, विणिग्गया अट्ट नरयावलिआ। पढमे पयरे दिसि इगुणवन्न विदिसासु अडयाला ॥१७॥ बीआइसु पयरेसुं, इगेगहीणाओ हुंति पंतीओ। जा सत्तममहिपयरे, दिसि एकेको विदिसि नत्थि ॥१७॥ इसृपयरेगदिसिसंख, अडगुणा चउविणा सइगसंखा । जह सीमंतयपयरे, एगुणनउआ सया तिन्नि ॥ १७६ ॥ अपइटाणे पंच उ, पढमो मुहमतिमो हवइ भूमी । मुहभूमिसमासद्धं, पयरगुणं होइ सवधणं ॥ १७७॥ छन्नवई सय तिपन्ना, सत्तसु पुढवीसु आवलीनरया।सेस तिआसीइ लक्खा, तिसयसिआला नवइ सहसा ॥१७८॥ तिसहस्सुच्चा सबे, संखमसंखिज्जवित्थडायामा। पणयाल लक्ख सीमंतओ अलक्खं अपइठाणो ॥ १७९॥ छसु हिटोवरि जोअणसहसं वावन्न सड्ड चरमाए । पुढवीऍ नरयरहियं, नरया संमि सवासु ॥१८॥ बिसहस्सूणा पुढवी, तिसहसगुणिएहिं निअयपयरेहिं । ऊणा रूवूणणिअपयरभाइआ पत्थडंतरयं ॥ १८१ ॥ पउणठ्ठधणु छअंगुल, रयणाए देहमाणमुक्कोसं । सेसासु दुगुणदुगुणं, पण धणुसय जाव चरिमाए ॥ १८२॥ रयणाएँ पढमपयरे, हत्थतिअं देहमाणमणुपयरं । छप्पन्नंगुल सड्डा, वुड्ढी जा तेरसे पुण्णं ॥ १८३॥ जं देहमाण उवरिमाए पुढवीएँ अंतिमे पयरे । तं चिअ हिटिमपुढवीऍ पढमपयरंमि बोद्धवं ॥ १८४ ॥ तं चेगूणगसगपयरभइ बीआइ पयरवुढि भवे । तिकरतिअंगुल करसत्त अंगुला सडगुणवीसं ॥ १८५ ॥ । पण धणु अंगुल वीसं, पनरस धणु दुन्नि हत्थ सड्ढा य । वासद्विधणुह सहा, पणपुढवी पयरवुडि इमा ॥१८६॥ Jain Education M rional For Privale & Personal use only R ww.jainelibrary.org
SR No.600134
Book TitleSangrahani Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1915
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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