SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संग्रहणी ॥१३३॥ Jain Education In % % % * * ল आहिवाहिविमुक्कस्स, नीसासूसास एगगो । पाणू सत्त इमो थोवो, सोवि सत्तगुणो लवो ॥ १३६ ॥ लवाण सत्तहत्तरीए, होइ मुहुत्तो इमंमि ऊसासा । सगतीससय तिहुत्तर, तीसगुणा ते अहोरत्ते ॥ १३७ ॥ लक्खं तेरस सहसा, नउअसयं. अयरसंखया देवे। पक्खेहिं ऊसासो, वाससहस्सेहिं आहारो ॥ १३८ ॥ दसवाससहस्सुवरिं, समयाई जाव सागरं ऊणं । दिवसमुहुत्तपुहुत्ता, आहारूसास सेसाणं ॥ १३९ ॥ सरिरेणोयाहारो, तयाइ फासेण लोमआहारो । पक्खेवाहारो पुण, कावलिओ होइ नायवो ॥ १४० ॥ ओयाहारा सबे, अपजत्त पजत्त लोमआहारो । सुरनिरएगिंदि विणा, सेस भवत्था सपक्खेवा ॥ १४१ ॥ सच्चित्ताचित्तोभयरूयो आहार सङ्घतिरिआणं । सबनराणं च तहा, सुरनेरइआण अचित्तो ॥ १४२ ॥ आभोगाणाभोगा, सवेसिं होइ लोमआहारो । निरयाणं अमणुन्नो, परिणमइ सुराण स मणुन्नो ॥ १४३ ॥ तह विगलनारगाणं, अंतमुहुत्ता स होइ उक्कोसो। पंचिदितिरिनराणं, साहाविय छट्ठअट्टमओ ॥ १४४ ॥ विग्गहगइमावन्ना, केवलिणो समोहया अजोगी अ । सिद्धा य अणाहारा, सेसा आहारगा जीवा ॥ १४५ ॥ केसट्ठिमंसनहरो मरुहिरवसचम्ममुत्तपुरिसेहिं । रहिआ निम्मलदेहा, सुगंधिनीसासगयलेवा ॥ १४६ ॥ अंतमुहुत्ते चित्र, पज्जत्ता तरुणपुरिससंकासा । सवंगभूसणधरा, अजरा निरुआ समा देवा ॥ १४७ ॥ अणिमिसनयणा मणकज्जसाहणा पुप्फदामअमिलाणा । चउरंगुलेण भूमिं न छिवंति सुरा जिणा विंति ॥ १४८ ॥ For Private & Personal Use Only सूत्रम् ॥१३३॥ www.jainelibrary.org
SR No.600134
Book TitleSangrahani Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1915
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy