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________________ सटीकवैराग्यशतकादि ॥ ४ ॥ हरहमेश म्हारा जोवामां आव्या छे. पोते कदाच लघुअभ्यासी होय तोपण तेओना उत्साहने प्रोत्साहन मळे, अने भविष्यमां आवा पृथक् पृथक् गच्छो अने समुदायोना लघुलघुवयना मुनिमहाराजो पण संशोधनादिकार्यमां प्रेराता रहे एटली ज भावनाथी, 'अङ्क ९० ' मो विद्यमान तपगच्छाचार्य श्रीविजयरामचन्द्रसूरि - शिष्य- बालब्रह्मचारी मुनिश्री कनकविजयजी द्वारा, अने आ वैराग्यशतकादि पांच प्रन्थो श्रीमद्बुद्धिसागरजी गणि द्वारा संशोधन कराववा प्रेरायो छु. संशोधक मुनिराजनो उपकार मानीये ए जरूरी छे. आ पछी प्रसिद्ध थनारा ग्रन्थोमां (१) अभिधानचिंतामणि कोष, निघंटुशेष, लिंगानुशासन, शब्दभेदप्रकाश, एकाक्षरनाममाला, शिलोंछ (२) जम्बूगुरु गुम्फित जिनशतक अने (३) जैनकुमारसंभव - सटीक प्रेसमां चालू छे. उपरांत (१) प्रमाणनयतत्वालोकालंकार रत्नाकरावतारिका टीका, टिप्पण, पंजिकासहित (२) आवश्यकनियुक्ति छायासहित ( ३ ) श्रीमद् यशोविजयजीकृत अनेकांतविवरण अने (४) आगमोद्धारक आगमव्याख्याप्रज्ञ आचार्यप्रवर श्रीमद् आनन्दसागरसूरीश्वरजीनी देखरेख नीचे दीर्घ खर्चवाळो, शक्य एटलो सम्पूर्ण अने सुन्दर 'प्राकृतकोप' प्रसिद्ध करवा माटे हस्तप्रत तैयार करवानुं कार्य चाली रधुं छे. ए ग्रंथ हवे पछी प्रेसमां मोकला शे. टोपीवाला चाल, सॅन्डहर्स्ट रोड, मुंबई सं० १९९७ श्रावणशुद्ध पूर्णिमा ता० ७ मी ऑगस्ट १९४१ गुरुवार Jain Educationonal For Private & Personal Use Only जीवणचंद साकरचंद जवेरी, अवैतनिक मन्त्री किश्चिद्वक्तव्य 118 11 ainelibrary.org
SR No.600132
Book TitleVairagya Shatakadi Granth Panchakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1941
Total Pages172
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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