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________________ सटीकवैराग्यशतकादि ॥९॥ छेल्लां पांच छ वर्षथी फंड तरफथी आगळ जेटला बधु प्रमाणमां पुस्तको प्रसिद्ध न थवानुं कारण ए हतुं के ए समय दरमियानाला . | फंड पासे पूरती रोकड रकमनो अभाव हतो. ते पहेलांनां वर्षोमा आगळ करतां वधु रकम खरचाई गयेली, अने निर्दिष्ट वर्षो दरमियान पु. फंडनो वेचवाना पुस्तकोनुं भंडोळ घणुं वधी गयुं होई पुस्तकना वेचाणमांथी थती आवक पण आगळ करतां बहु ओछी थई गई हती.|8 गिळ करता बहु आछा थइ गइ हता. उद्भव आथी थोडो समय पुस्तकप्रकाशननुं काम मुलतवी राख आवश्यक थई पड्युं हतुं. त्रणे वर्ष व्याजनी रकम भेगी थवा देवामांना इतिहास ६ अने पुस्तकोनो स्टॉक वेचवामां गयां.. आ पछी ट्रस्टीओए फंडर्नु आशरे रू० एक लाख दश हजार- थवा जतुं आ भंडोळ वधारे उत्पन्नमाटे सिक्युरिटिमांथी छुटुं| करी उपरोक्त मकानमा रोक्यु. ते पछी एकाद वर्षे मकाननी आवक एकत्र थवा मांडी. | आ रीते पैसानी छूट थतां पुस्तकप्रकाशननुं कार्य हवे फरी हाथमा लेवामां आव्युं छे. जो विक्रय प्रमाणमां ठीक चालु रहेशे तो पुस्तको मोटा प्रमाणमा प्रसिद्ध करवानें अमारे माटे वधु सुगम बनशे. जैनसमुदाय आ वात लक्ष पर लई बने एटलां पुस्तको खरीदी ज्ञानप्रभावनाना कार्यने उत्तेजन आपशे, एवी आशा राखं छु. ॥९ ॥ मुंबाई ता०७ ऑगस्ट, १९४१ गुरुवार. वि० सं० १९९७, श्रावण शुद्ध नारियेळी-पूर्णिमा. जीवणचंद साकरचंद जवेरी अवैतनिक मत्री Jain Education For Private Persorsaluse Only N ainelibrary.org
SR No.600132
Book TitleVairagya Shatakadi Granth Panchakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1941
Total Pages172
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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