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________________ २३४-२६२ श्राद्धप्र-शहा अन्नायं किमेअंति ॥४८॥ तहवि ववहारनिउणो स भणइ नरनाह ! देसि पिच्छेउं । उद्धारयनिक्खिवयसा- 18|१६गाथाति०सूत्रम् काराणि जओ वणिजाणि ॥४९॥ ता तेण गिहं गंतुं पुचि लिहिआ निरूविआ वहिआ। सवाविन पुण दिटुं अभि-18 यां तृती हाणं नावि अहिनाणं ॥५०॥ तह भणिए भणइ निवो न निवा आभीरिओ वंचेउं । सक्का वंचणकजे सकेणवियाणुव्रते ॥८१॥ वणिअधुत्तेणं ॥५१॥ एस ववहारसुद्धो मुद्धो परवंचणे परधणे अ। निश्चमलुद्धो सामिअ! विआरणिज्जं इमं तेणं वसुदत्त ध॥५२॥ ज भणिअं-"मा होह सुअग्गाहीमा पत्तिअ जं न दिट्ठपच्चक्खं । पञ्चक्खेवि अदिढे जुत्ताजुत्तं विआरिजा नदत्तकथा ॥५३॥” इअ उवयारपरेहिं ववहारिवरेहि केहिवि महीसो। विन्नविओवि न मन्नइ कुमंतिवुग्गाहिओ अहिअं ॥५४॥ नयनिरओवि नरेसो किं कुजा दुजणा जहि पहाणा। गिहनाहसुसाहुत्तं असाहुगिहिणीइ कह सहलं ? ॥५६॥ तुह रिणदाणे मुक्खो सुक्कज्झाणेव नन्नहत्तितओ। निवअक्खिअंस सक्खि पडिवजिअनिअगिहं स गओ ॥५६॥ चिंताउरो तओ सो सवयंसो सुद्धचरियअवयंसो। चिंतइ विविह उवाए पुच्छइ बुद्धीउ बहु वुढे ॥ ५७॥ धुत्ताण मूलदेवाइआण अक्खाणयाई निसुणेइ । जा लहइ न उवायं संवहइ ता हिअदुहं दुसरं 2|॥५८॥ आसासहिअंपि दुहं बहुएहिं सहिजए सुबहुअंपि । आसारहिअंतु दुहं महयाणवि होइ अइदुसहं|8| ॥८१॥ ॥ ५९॥ तत्तो सो मित्तेणं वृत्तो हे मित्त! वित्तगहणट्टा । धुत्तेहि इमं कित्तिमपत्तं दत्तं निवस्स धुवं ॥६०॥ ता मा कासि विसायं पायं पुन्नस्स सबहावि जओ । पावस्स खओ पुधिपि हु अणुहूअं इहेव इमं ॥ ६१॥सुहसउणाओ इव तवयणाओ पुण मणे कुणइ आसं। दुहजलहिनिवडियाणं धुवं पवहणं सुवयणंपि ॥३२॥ कविकच्छूकच्छूए | Jain Education Orainelibrary.org For Private Personal Use Only on
SR No.600129
Book TitleShraddh Pratikraman Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1919
Total Pages474
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size23 MB
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