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लोकप्रकाशे
आमुख.
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विद्ववृन्दमनोज्ञकाव्यततिभिर्यः स्तूयते सर्वदा, भूपालप्रतिबोधको गुरुमतिः सिद्धान्तपारङ्गमी । व्याख्यादानविचक्षणः शुभगुणैर्विख्यातकीर्तिः सुधीः, आनन्दाब्धिमुनीश्वरं गणपतिं वन्दे महाज्ञानिनम् ॥
णमो सिद्धाणं। महोपाध्यायश्रीविनयविजयविरचित-श्रीलोकप्रकाशे
आमुख। अतिगहन विषयोथी भरपूर श्रीलोकप्रकाश नामा महामन्थने चार विभागमा पण, परिपूर्णरूपे प्रजा समक्ष मूकतां परम आझाद थाय छे. शेठ देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंड, के जेमांथी अत्यार सुधी अमूल्य प्रन्थो, श्रीमद् आचार्य म० आनन्दसागरजी सूरीश्वरादि मुनिवर्योनी महतकपावडे प्रसिद्ध करवामां आव्याछे, तेना ८६मा अक तरीके आ चोथा विभागने प्रसिद्ध करवामां आवे छे. | महोपाध्याय विनयविजयजीमहाराजानुं जीवन, संशोधक श्रीमद् आनन्दसागरजी सूरीश्वरजीनो उपोद्घात, अने विषयानुक्रम इत्यादि प्रसिद्ध करवू हा; परन्तु यत्रो, कोठाओ अने चित्रोनो पांचमो विभाग बहार पाडवानी इच्छा होवाथी आमां कशुं लीधुं नथी.
चारे विभागनुं संशोधन करवा माटे श्रीमद् आनन्दसागरजी सूरीश्वरजीनो, तेमज हस्तप्रत आपवा माटे श्रीजैनानन्दपुस्तकालय, सुरतना कार्यवाहकोनो उपकार मानिये छिये. सुरत-गोपीपुरा ता. २६ सप्टेम्बर १९३६
जीवनचन्द साकरचन्द जहेरी, सं० १९९२ द्वितीय भाद्रपद शुक्ल १० शनिवार.
पोता अने अन्य मानार्थ संचालको माटे.
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