SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 643
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Educat सो तीए सहिउ पंचप्पयार, उवभुंजइ विसय अणन्नसार । अनिल पाल जिगह धम्मु, दूरेण विवज्जइ पावकम् ॥ १९ ॥ कालकमेण विसय विरन्तु, पवज्ज लेइ सुपसंतचित्तु । rational तवचरणेहिं झोसिउ पावकम्मु, पञ्चक्खु विरायइ नायम्मु ॥ २० ॥ अह ससहरनिम्मलु पाविवि केवलु, पडिवोहिवि चिरु भवजणु । सिवमद्दह नंदणु भवभयमद्दणु, वच्चइ निवइ वरभवणु ॥ २१ ॥ इय परदारनिवित्तीमित्तंपि अणुवयं पवन्नमिमं । एवंविहोत्तरोत्तरकलाणनिबंधणं होइ ॥ २२ ॥ भणियं चउत्थणुवयमेत्तो पंचमगमाणुपुवीए । सयलपरिग्गहपरिमाणकरणविसयं पर्यपेमि ॥ १ ॥ दुवि परिग्गहो सो धूलो सुहुमो उ तत्थ सुहुमो य । परकीएसुवि वत्थुसु ईसिं मुच्छाइपरिणामो ॥ २ ॥ धूलो पुण नवभेओ धणेय धन्ने य खेत्तवत्थूसु । रुप्पसुवन्नचउप्पय दुप्पयकुविएस मुणिअवो ॥ ३ ॥ इय नवभेयपरिग्गहपरिमाणं भावसारमादाय । पंचइयारविवज्जणपरायणो सावगो मइमं ॥ ४ ॥ खेत्ताइ हिरन्नाईघणाइदुपयाइ कुप्पमाणकमे । जोयणपयाणबंधणकारणभावेहिं नो कुणइ ॥ ५ ॥ जो पुण अइलोभवसा भणिजमाणोवि गुरुजणेण बहुं । थेपि नो परिग्गहपरिमाणवयं पवज्जेइ ॥ ६ ॥ For Private & Personal Use Only Jainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy