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________________ न उण इमीए एए कुवलयदलदीहरच्छिविच्छोहा । सोढुं सक्का निचित्रमयरद्वयभावसंवलिया ॥२॥ रइरंभाहरिदइयातिलोत्तमापमुहदिवनारीओ । मन्ने इमीऍ रूवेण लजियाओ न दीसंति ॥ ३ ॥ | विनाणं झाणं सत्थकोसलं देवयाण पूया य । विहलं सर्वपि इमं जइ एयमहं न पावेमि ॥४॥ केवलमुवायओ संगमेऽवि एयाए कहवि दिवसा । सवत्थ वित्थरंतो अबन्नकाओ दुसरोहो ॥५॥ अहवा किमणेण?-हरिहरहिरण्णगम्भा वसिट्ठजमदग्गिवा(चा)सदुबासा। हरिणच्छिवयणनिहेस कारिणो जइ पुरा जाया ॥६॥ ताकि अम्हारिसमुणिजणस्स सुद्रवि विसिट्ठधम्मस्स । लज्जा वयणिजं वा? ता पजत्तं विगपेहिं ॥७॥ जुम्म । तह कहवि करेमि जहा इमीए सद्धिं समागमो होइ । इय निच्छिऊण गंभीरभावमभुवगओ एसो॥८॥ आगारसंवरं च काऊण जहापउत्तनाएण भोत्तुं पवत्तो, अह तकालवियंभियमयणगुरूवएसबसओ इव जाया से 5 बुद्धी, जहा विप्पयारे मि एयं सेटिं, जेण वयणिज्जविरहिओ एयाए लाभो हवइत्ति, एवं संपेहिऊग सेटिणो पलोय-16 माणस्स दुस्सहदुक्खावेगसंसूयगो विमुक्को अणेण सिक्कारो, ससंभमेण निरूविओ सेट्टिणा, खणंतरंमि य गए पुणोऽवि पुवक्कमेण पयडियलोमुद्धोसनिन्भरे सवयणभंगभासुरे दोचं तचं च विमुकमि सिक्कारे अहो किंपि अचंतमणिहमावडि-| ४/हित्ति विभाषितो जाव सेट्टी अच्छइ ताव सो मुहसुद्धिं काऊण समुदिओ भोयणमंडवाओ, उपविट्टो अन्नत्थ, सेट्ठीवि ACACAKACHA-% ५२ महा० Jain Education a l For Private & Personal use only delibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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