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पच्छा भरेंति करवत्तयाई दिइणो य कलसए चैव । दुलहं लद्धं वत्थं कह वा नो घेपइ जणेण १ ॥ ११ ॥ जाया पुणोवि चिंता तेसिं जह सलिलमित्थ लद्धमहो । तह बीयमुहे खणिए पाविज्जइ नूण तवणिजं ॥ १२ ॥ तादिह पुणरविवम्मियस्स वीयं मुहं लहुं चेव । इय भणिए पुरिसेहिं तहत्ति सवं तओ विहियं ॥ १३ ॥ ताहे सुजचकं चणनिचयं तत्तो विणिग्गयं संतं । हरिसुलसियसरीरा गिण्हंति जहिच्छियं वणिया ॥ १४ ॥ भिति वम्मियनिभेण चिंतामणी पयावरणा । अम्हारिसपहियहियट्टयाए मन्ने कओ एत्थ ? ॥ १५ ॥ ता अजवितइयमुहं भेत्तवं होइ संपयमिमस्स । संभाविज्जंति इमंमि जेण रयणाणि मणिणो य ॥ १६ ॥ एत्थंतरंमि पुरिसेहिं भिंदियं तंपि लोभनडिएहिं । अह नीहरियाई तओ रयणाइँ अणेगमेयाई ॥ १७ ॥ कणगं परिहरिऊणं महग्घरयणेहिं तेहिं सगडाई । भरियाई गाढपहरिससंभारं उवहंतेहिं ॥ १८ ॥ नवरं चत्थमिय मुहंम भेत्तुं पयट्टिया वंछा । तेसिं तु उत्तरोत्तरविसिद्ववत्थूण लाभेण ॥ १९ ॥ अह जाव तं विहािित नेव तावेगथेरपुरिसेण । तेसिं हियत्थिणा सुद्धबुद्धिणा जंपियं एयं ॥ २० ॥ भो भो देवापिया ! जलं च कणगं च रयणनिवहं च । लद्धूण मुयह वम्मियमहुणा वच्चह सगेहे ॥ २१ ॥ मा पहाडह एयं काण गईओ हुंति कुडिलाओ । सिट्टो सिद्धतेविहु लोभो मूलं विणासस्स ॥ २२ ॥ absa सिद्धमिमं जं किर निवसति गाढदाढिला । अचंततिचदप्पा सप्पा वम्मियनिवासे ॥ २३ ॥ :
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